जयपुर.एसएमएस मेडिकल कॉलेज में दवाओं के क्लीनिकल ट्रायल के
दौरान हर साल चार-पांच मौतें हो रही हैं। एथिक्स कमेटी के सदस्य इस बात की
पुष्टि करते हैं। उनके मुताबिक 8 साल में किसी को भी आर्थिक सहायता मिलने
का रिकॉर्ड नहीं है।
ड्रग कंपनियां किसी दवा को बाजार में उतारने से पहले डॉक्टरों के जरिए
इन्हीं मरीजों पर ड्रग ट्रायल करके दवाओं के सही-गलत प्रभावों का पता
लगाती हैं। ट्रायल के दौरान ऐसे मरीजों को कई बार दवाओं के गलत प्रभावों की
कीमत चुकानी पड़ती है तो कई की मौत भी हो जाती है। इस बारे में ट्रायल कर
रहे डॉक्टर मरीज की मौत की सूचना तो एथिक्स कमेटी को दे देते हैं, लेकिन
उनकी ओर से हर बार मौत के कारण ट्रायल के बजाय दूसरे ही रहे हैं।
ड्रग ट्रायल पर निगरानी के लिए बनाई गई ड्रग सेफ्टी कमेटी ने ऐसे
मरीजों की मौत के कारण खंगालने शुरू किए हैं। शुरुआती चरण में ही कमेटी की
ओर से एसएमएस मेडिकल कॉलेज के बर्न एवं प्लास्टिक यूनिट के एक डॉक्टर के
ट्रायल के दौरान हुई पांच मौतों के कारण खंगाले। कमेटी की रिपोर्ट के बाद
ट्रायल पर रोक लगा दी गई। फिलहाल कमेटी के पास करीब 10 से ज्यादा मरीजों की
मौत के मामले विचाराधीन है।
कमेटी के सदस्यों सहित एथिक्स कमेटी के कुछ सदस्यों ने ड्रग ट्रायल के
दौरान बढ़ रही मौतों और इसको लेकर देशभर में उठ रही आवाजों के बाद ट्रायल
के दौरान मरीज की मौत पर ‘नॉ फॉल्ट कंपनसेशन’ (मौत का कारण जो भी हो, मरीज
को सहायता मिले) देने का मुद्दा भी उठाया है। हालांकि इस पर एसएमएस मेडिकल
कॉलेज में सहमति नहीं बन पा रही।
दो मामलों में सहायता राशि देने को लिखा
पिछले दिनों एथिक्स कमेटी की ओर से केवल दो मरीजों की मौत के बारे में
बतौर सहायता राशि देने के लिए कंपनी को लिखा है। लेकिन वह राशि भी उस मरीज
के परिजनों को मिली या नहीं, इस बारे में भी एथिक्स कमेटी को कोई सूचना
नहीं है। कमेटी सदस्यों के मुताबिक उनका काम केवल संबंधित कंपनी को प्रपोज
करना है, हर्जाना देने का काम संबंधित कंपनी की ओर से चयनित इंश्योरेंस
कंपनी का होता है।
1 डॉक्टर 5 ट्रायल : विरोध हुआ, सुधार नहीं
मेडिकल कॉलेज के टीचर्स पढ़ाने, अस्पताल में मरीजों को देखने और दूसरे
कई कार्यो में व्यस्तता के बावजूद क्लीनिकल ट्रायल में पीछे नहीं रहते।
एथिक्स कमेटी की ओर से एक ही डॉक्टर को एक साथ पांच क्लीनिकल ट्रायल करने
की अनुमति दे दी जाती है। इस बात को लेकर एथिक्स कमेटी के कुछ सदस्यों ने
ही बैठकों में मामला उठाया कि इस संख्या को कम किया जाए, ताकि दवाइयों का
ट्रायल भी ठीक हो और डॉक्टर इस दौरान दूसरे कार्यो में भी बराबर फोकस कर
सके।
मिलना चाहिए हक
ट्रायल में शामिल सभी मरीजों को भी मिले मुआवजा। ट्रायल संबंधी ड्रग
की वजह से हुई डेथ का पूरा मुआवजा हो, अन्य को नो फॉल्ट कंपनसेशन दिया जाए।
इस कंपनसेशन ने लिए एकाध सप्ताह की निश्चित समयावधि तय हो, ताकि संबंधित
परिजनों की भागदौड़ कम हो। मुआवजा देने की जिम्मेदारी और प्रक्रिया संबंधित
ड्रग कंपनी की हो, अभी इंश्योरेंस कंपनी की होती है, जिससे मुआवजा लेने
में भारी परेशानी।
(डॉक्टरों सहित एथिक्स कमेटी के कुछ सदस्यों से बातचीत के मुताबिक)
कमेटी को तो मिलती है फीस
क्लीनिकल ट्रायल के लिए संबंधित कंपनी की ओर से दी जाने वाली रकम में
से एथिक्स कमेटी को कुछ प्रतिशत राशि जमा करानी होती है। एसएमएस कॉलेज
प्रिंसिपल डॉ. सुभाष नेपालिया के मुताबिक ‘यह बतौर कमेटी की फीस ली जाती
है। यह एसओपी (स्टेंडिंग ऑपरेटिंग प्रोसीजर) सरकार की गाइड लाइन के मुताबिक
तय किए जाते हैं, जो कि संस्थान के चार्जेज होते हैं।’ हालांकि जिन मरीजों
को केन्द्र में रखकर दवाओं के प्रयोग किए जा रहे हैं, उनको कोई आर्थिक मदद
नहीं मिल रही।
क्या है गाइडलाइन
गाइडलाइन के मुताबिक डॉक्टर की ओर से क्लीनिकल ट्रायल से पहले पेशेंट
को जानकारी देकर उसकी स्वीकृति लेना जरूरी है। ट्रायल के दौरान पूरा इलाज,
दवाइयां, मेडिकली जांच मुफ्त करनी होती है। साथ ही आने-जाने के लिए कन्वेंस
भी देना होता है। यदि क्लिनीकल ट्रायल के दौरान मरीज की मौत होती है तो
उसकी पारिवारिक स्थिति, उसके आश्रितों आदि को देखते हुए हर्जाना
(इंश्योरेंस कंपनी) भी दिया जाता है।
जिम्मेदार ने कहा
एसएमएस मेडिकल कॉलेज में क्लीनिकल ट्रायल के दौरान सालाना 4-5 मौतें
होती हैं। 2005 से अब तक करीब 35 हो गई। हमने दो केसेज में सहायता राशि
देने के लिए कंपनी को प्रपोज किया है। प्रोसिजर में होगा। एथिक्स कमेटी की
मीटिंग में इस बारे में पता करेंगे। 2005 से चल रहा है ट्रायल। मैं तो दो
साल से हूं। मेरे समय में तो ये आए। ज्यादातर मौत के कारण दूसरे हो जाते
हैं। मरीज क्लीनिकल ट्रायल के दौरान दवा से ही थोड़े मरे होंगे?
-डॉ. आरके सुरेखा एथिक्स कमेटी के सचिव
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