बजरंगी जब मुझसे बोले l
रात के करीब 2:00 बज रहे थे नींद से आंखें बोझिल होने लगी शायद सो गया था या अर्ध निंद्रा में कुछ समय पहले तक घटित हुई घटनाओं का स्वप्न अवलोकन कर रहा थाl
सपना था या सच था या शायद भ्रम था सिंदूर में लथपथ भगवान साक्षात सामने आकर खड़े हो गए हालांकि मैं धार्मिक नहीं हूं लेकिन इतना भी नास्तिक नहीं हूं कि हनुमान जी को नमन भी ना कर सकूं l मैंने पूछा प्रभु मुझे दर्शन देकर आपने मेरे मन के भय को समाप्त कर दिया और सुंदरकांड कि वह चौपाई बरबस ही मेरे मुंह से निकल पड़ीl" सब सुख लहै तुम्हारी सरना तुम रक्षक काहू को डरना "
बजरंगबली बोले यह सब बातें सतयुग में हुआ करती थी भैया आजकल तो हालात इतने बिगड़ गए हैं कि मनुष्य जाति के नाम पर ही बड़े-बड़े देवताओं की भी झुरझुरी छूट जाती हैl हमारी तो बिसात ही क्या?
मैंने कहा प्रभु क्या हो गया बड़े घबराए से लग रहे हो आपके चेहरे को देख कर ऐसा लग रहा है जैसे बिना लाइसेंस का ड्राइवर गाड़ी चलाते हुए रेड लाइट क्रॉस कर ले और पुलिस के हत्थे चढ़ जाएl 5मिनट तक प्रभु मौन हो गए फिर गंभीर मुद्रा में बोले कि तुम लोगों को तो कोई लाज शर्म नहीं है अपने स्वार्थ के लिए जाने कहां कहां और कैसी कैसी जगहों पर अनैतिक रूप से कब्जा कर हम को जबरन बैठा दिया है ना तो तुम्हें किसी नियम की परवाह है और ना किसी कानून कीl
जब मर्जी हुई आ कर घंटा बजा देते हो चोरी के जल से ना चाहते हुए भी दो, दो -तीन ,तीन बार स्नान करा देते हो l गर्मी और सर्दी यह भी नहीं देखते कि हमें भी ठंड लग सकती है कभी तो मौसम का ख्याल किया करो l सरकारी लाइनों पर तार डालकर बड़े-बड़े तेज वाट के बल्बों से मेरी आंखों को फोड़े जाते रहते हो l
तुम सब इसके आदि हो चुके हो या यह कहूं कि मोटी खाल वाले आतंकवादी बन चुके होl कभी जन्मदिन के नाम पर, तो कभी सुंदरकांड के नाम पर ,अपने ही धर्म भीरु साथियों को इकट्ठे कर पुजारी से महंत और महंत से मठाधीश बन जाते हो l
डर तुम्हें लगता नहीं डर मुझे लगता है कब सरकारी जमीन पर नियम विरुद्ध बनाया गया मेरा निवास कब किस न्यायालय के आदेश से या विकास के नाम पर चलाई जा रही हवाई रेल के चक्कर में धराशाई कर दिया जाए और मैं बेघर हो जाऊंl
प्रभु बोले सुना है तेरा राजनीति में भी कुछ दखल है और हर बार सत्ता में आने वाली पार्टी में तू मित्र जुगाड़ से चिपक जाता हैl तो भैया अब तो तेरा ही सहारा है तू कोई ऐसा रास्ता निकाल दें जिससे हम देवताओं को कानून द्वारा ही अधिकार प्राप्त हो जाए कि एक बार जब जहां बैठ गए वह जगह स्थाई रूप से हमें ही आवंटित हो जाएl
इसलिए मैंने भक्त तुझे रात के दूसरे पहर में डिस्टर्ब कर किया है अब मेरी चिंता का समाधान तुम्हें ही करना है वरना मैं तो कुछ ना कर पाऊंगाl ध्यान रखना हमारी पूरी जमात का क्या हाल होगा यह भी जरा देख लेनाl
मैं डर के मारे जोर से कांपने लगा जोर जोर से मेरे मुंह से निकल रहा था l "भूत पिशाच निकट नहीं आवे महावीर जब नाम सुनावे " शरीर ऐसा हो गया मानो शरीर से किसी ने सारा रक्त निचोड़ लिया हो l
अशोक भटनागर ,
( पत्रकार एवं सामाजिक चिंतक )