लंदन।
माना जाता है कि द सन ने 1970 दशक में पेज 3 से सेक्स और सेलिब्रिटी को ले कर मिर्च मसाले के साथ चटपटी गपशप का सिलसिला शुरू किया, लेकिन भारतीय मूल के एक इतिहासकार का कहना है कि इन दो चीजों पर मीडिया का जुनून दो सौ साल पुराना है।ऑक्सफोर्ड के इतिहासकार फरामर्ज डाभोइवाला इस सिलसिले में 18वीं सदी के इंगलैंड की गणिका किट्टी फिशर की मिसाल देते हैं। डाभोइवाला ने अपनी नई किताब द ऑरिजिन्स ऑफ सेक्स: ए हिस्ट्री ऑफ द फर्स्ट सेक्सुअल रिवोल्यूशन कहा कि 1960 दशक में समूचे पश्चिमी देशों में सेक्स के मामले में उदारवाद की जो बयार बही वह वस्तुत: अठारहवीं सदी के घटनाक्रम के चलते ही संभव हो सकी।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक विज्ञप्ति के अनुसार डाभोइवाला ने कहा कि किट्टी जैसी महिलाएं पहली पिन-अप थी। उन्होंने अपनी तस्वीरों की हजारों प्रतियां बनवाई ताकि लोग उसे खरीद सकें।
उन्होंने कहा कि 1600 तक पश्चिमी देशों में विवाहेतर सेक्स को खतरनाक समझा जाता था। उस वक्त परपुरूष गमन की सजा मौत थी। इंगलैंड में परपुरूष गमन के लिए जिस आखिरी महिला को मौत की सजा दी गई वह सुसन बाउंटी थी। उसे 1654 में फांसी पर चढ़ाया गया।
डाभोइवाला ने कहा कि जहां 17वीं सदी में महज एक प्रतिशत जन्म शादी के बंधन के बाहर होते थे, चीजें तेजी से बदली और 1800 आते आते यह स्थिति हुई कि शादी के समय 40 प्रतिशत दुल्हन गर्भवती थीं।
सेक्स के प्रति रुझान में इस बदलाव पर पहली बार उनकी निगाह उस समय गई जब वह ऑक्सफोर्ड में 17वीं और 18वीं सदी के कानूनी स्रोतों पर शोध कर रहे थे। विज्ञप्ति के अनुसार इसके बाद डाभोइवाला ने अपने शोध का दायरा उस काल के साहित्यिक, चित्रात्मक और अन्य स्रोतों तक फैलाया।
वह पहले यौन क्रांति को धर्म के प्रति बदलते रूख, सजाए मौत की समाप्ति और यौन स्वतंत्रता के सिद्धांत के विकास से जोड़ते हैं।
सेक्स के प्रति रुझान में इस बदलाव पर पहली बार उनकी निगाह उस समय गई जब वह ऑक्सफोर्ड में 17वीं और 18वीं सदी के कानूनी स्रोतों पर शोध कर रहे थे। विज्ञप्ति के अनुसार इसके बाद डाभोइवाला ने अपने शोध का दायरा उस काल के साहित्यिक, चित्रात्मक और अन्य स्रोतों तक फैलाया।
वह पहले यौन क्रांति को धर्म के प्रति बदलते रूख, सजाए मौत की समाप्ति और यौन स्वतंत्रता के सिद्धांत के विकास से जोड़ते हैं।
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