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9 फ़र॰ 2012

मुद्दा जो उठा ही नहीं

बोद्ध वृक्ष

इस पेड़ के नीचे लगाया था बुद्ध ने ध्यान

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उत्तर प्रदेश में लगभग 15 वर्ष पहले श्रावस्ती ज़िले का गठन किया गया. गोंडा-बलरामपुर सीमा पर स्थित ये ज़िला विशेषतौर पर बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए अहम है क्योंकि बड़ी संख्या में पर्यटक और श्रद्धालु वहाँ पहुँचते हैं.

श्रावस्ती के जेतवन में गौतम बुद्ध ने 24 वर्ष वर्षा ऋतु के चार महीने गुज़ारे थे. वहीं पर तीसरे जैन तीर्थंकर संभवनाथ का जन्म स्थान भी है.

मगर इतने धार्मिक महत्त्व के बावजूद उसे पर्यटन के बड़े केंद्र के रूप में विकसित नहीं किया जा सका है.

यहाँ के जेतवन में एक वृक्ष है जिसके नीचे माना जाता है कि गौतम बुद्ध ने उन 24 वर्षों की वर्षा ऋतु में ध्यान लगाया था.

आज उस वृक्ष को हर तरफ़ से सहारा देकर खड़ा रखा गया है और ऐसा लगता है कि श्रावस्ती के पर्यटन उद्योग को भी कुछ उसी तरह के सहारे की ज़रूरत है।

वीरान हवाई अड्डा

लाखों विदेशी पर्यटक आते हैं मगर सड़क मार्ग से। मुझे ये जानकर बेहद आश्चर्य हुआ कि वहाँ पर एक हवाई अड्डा भी है.
जाकर देखा तो पूरी तरह वीरान, बड़ा सा गेट जो कि बंद था और शायद इतने समय से बंद था कि खुलने लायक़ हालत में ही नहीं था। हवाई अड्डे का टर्मिनल जर्जर हालत में.

जब 1993 में उस हवाई अड्डे की नींव रखी गई और 1995 में वो बनकर तैयार हुआ तो सोच ये थी कि वहाँ पर देश-विदेश से बौद्ध सैलानी सीधे पहुँच सकेंगे और श्रावस्ती का विकास हो जाएगा. मगर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ.

यहाँ का 1400 मीटर का रनवे अंतरराष्ट्रीय स्तर की उड़ान के लिए 200 मीटर छोटा रह गया और आज तक साल दो साल में एक-दो बार चार्टर्ड विमान या हेलिकॉप्टर उतर जाता है।

विभिन्न देशों के मठ

बौद्ध प्रभाव वाले कई देशों ने श्रावस्ती में अपने मठ बना रखे हैं. श्रीलंका से प्रतिवर्ष हज़ारों की संख्या में बौद्ध धर्म के अनुयायी श्रावस्ती पहुँचते हैं.

श्रीलंका की मठ की सुमेधा ने बताया, "पिछले साल यहाँ 50 हज़ार श्रीलंकाई श्रद्धालु आए थे और इस साल ये आँकड़ा 75 हज़ार तक जाने की उम्मीद है।"

उनका कहना था कि अगर श्रावस्ती हवाई अड्डा अंतरराष्ट्रीय स्तर का हो जाए तो पर्यटकों को काफ़ी सुविधा हो जाएगी.

श्रावस्ती में ही वो जगह भी है जहाँ माना जाता है कि अंगुलिमाल डाकू और गौतम बुद्ध का आमना-सामना हुआ था.

उसके पास मुझे काफ़ी श्रद्धालु दिखे, पूछा तो पता चला कि अमरीका के मठ से आए हैं और उनमें से कुछ न्यूज़ीलैंड की नागरिकता वाले तो कुछ चीन के, जापान के, ताइवान के हैं.

नहीं है मुद्दा

उनके दल की प्रमुख ओमनछाउन मेकोलाय से मैंने पूछा कि अगर श्रावस्ती हवाई अड्डा बन जाए तो.

इस पर ओमनछाउन मेकोलाय का कहना था, "निश्चित ही काफ़ी सुविधा हो जाएगी. हम लोग अमरीका से ताइवान होते हुए दिल्ली पहुँचे और वहाँ से लखनऊ होकर श्रावस्ती एक बस में पहुँचे."

उनमें से कुछ ने बताया कि लखनऊ से श्रावस्ती के बीच की सड़क भी काफ़ी ख़राब है.

मुद्दा इतना बड़ा मगर विधानसभा चुनाव में इसका कोई ज़िक्र नहीं. लोगों का कहना है कि इलाक़े से जीतने वाले विधायक और सांसदों ने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया.

आज़ादी के 64 वर्ष बाद इतने बड़े पर्यटन केंद्र तक रेलवे लाइन भी नहीं है और लगभग 45 एकड़ में हवाई अड्डा बनकर वीरान पड़ा है.

चिंता स्थानीय नागरिकों को है, आने वाले नेता पूछने पर आश्वासन देकर चल देते हैं और श्रद्धालुओं की श्रद्धा उनके वहाँ पहुँचने की मुश्किल पर कहीं भारी पड़ती है।

थाई बौद्ध मंदिर

श्रावस्ती में कई देशों ने बोद्ध मठों की स्थापना की हुई है.

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