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25 फ़र॰ 2012

शिक्षक नहीं शामिल हो सकते सक्रिय राजनिति में

लास्ट टर्मिनल.नागपुर

बांबे हाई कोर्ट ने गुरुवार को फैसला सुनाया है कि शिक्षकों का राजनीति में शामिल होना गलत है। बल्कि उन्हें राजनीति में शामिल होने का अधिकार ही नहीं है। कोर्ट का मानना है कि शिक्षक अगर किसी राजनीतिक दल में होगा तो वह शिष्यों को भी उसी विचारधारा पर चलने की शिक्षा देगा। इसलिए अगर उसे राजनीति में रहना है तो पहले शिक्षक पद से इस्तीफा देना होगा।

बांबे हाई कोर्ट ने कहा है कि शिक्षा को राजनीति से दूर रखना जरूरी है। इसके साथ ही बांबे हाई कोर्जट की नागपुर बेंच के जस्टिस पीबी मजमूदार और जस्टिस पीबी वराले की बेंच ने श्रीकांत पांडे की याचिका खारिज कर दी।
श्रीकांत पांडे नागपुर जिले के उमरेद में नूतन आदर्श जूनियर कालेज में शिक्षक थे। उन्हें 23 नवंबर 2011 को निलंबित कर दिया गया था। उन्होंने इसी निलंबन को चुनौती दी थी। पांडे के वकील आनंद परचुरे ने दलील दी थी कि पांडे को महज इसलिए निलंबित कर दिया गया क्योंकि वह एक राजनीतिक दल से जुड़े थे और भारतीय जनता पार्टी की स्थानीय इकाई के अध्यक्ष थे।

जजों ने कहा, पहली नजर में हम मानते हैं कि किसी सरकारी क्रमर्चारी को या शिक्षण संस्थान में नौकरी करने वाले को किसी राजनीतिक दल से रिश्ता नहीं रखना चाहिए, खासकर जब तक वह नौकरी कर रहा है।
जजों ने कहा, अगर कोई ऐसा कर्मचारी सक्रिय रूप से राजनीति से जुड़ा है तो वह निश्चित ही ही अपनी राजनीतिक विचारधारा वहां लागू करना चाहेगा। शिक्षा देते समय भी वह ऐसा नहीं करेगा इससे इनकार नहीं किया जा सकता।
जजों ने कहा कि वे महसूस करते हैं कि शिक्षक का दायित्व विद्यार्थियों को निष्पक्ष रूप से शिक्षा प्रदान करना है। अदालत ने फैसला सुनाया कि पांडे का निलंबन इस आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता कि उन्हें शिक्षण संस्थान में अध्यपन के साथ निजी तौर पर किसी भी राजनीतिक दल से जुड़ने का अधिकार है।
जहां तक शिक्षा का सवाल है उसे राजनीति से अलग रखना जरूरी है। शिक्षण के क्षेत्र को किसी भी तरह की राजनीति से प्रदूषित नहीं किया जाना चाहिए। कुछ संस्थान होते हैं जिन्हें राजनीति से दूर रखना चाहिए उनमें शिक्षण संस्थान शामिल हैं।

पांडे के वकील ने दलील दी कि सेवा नियमों में ऐसा कुछ नहीं लिखा है कि कोई शिक्षक किसी राजनीतिक पार्टी का सक्रिय सदस्य नहीं रह सकता। राजनीतिक दल की स्थानीय इकाई का अध्यक्ष पद उनके मुवक्किल के शिक्षण कार्य में रोड़ा भी नहीं बन रहा है। कई शिक्षक तो राजनीतिक दलों के पदाधिकारी भी हैं। कुछ तो विधानमंडल के सदस्य भी हैं। शिक्षकों के लिए अलग से निर्वाचन क्षेत्र भी है।

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