भोपाल ।
दुनिया भर में 14 फरवरी को मनाये गए वेलेंटाइन डे का खुमार अब शायद उतर चुका होगा। लेकिन पश्चिमी मध्यप्रदेश के आदिवासी जोड़े अपने पारंपरिक प्रेम पर्व भगोरिया की विश्व प्रसिद्ध मस्ती में डूबने के लिये दम साधे इंतजार कर रहे हैं।
प्रदेश में इस साल प्रमुख भगोरिया हाटों के उत्सव की शुरूआत एक मार्च से हो रही है। यह सिलसिला हफ्ते भर तक चलेगा। प्रेम का यह परंपरागत पर्व देश का दिल कहलाने वाले राज्य के झाबुआ, धार, खरगोन और बड़वानी जैसे आदिवासी बहुल जिलों में मनाया जाता है। सदियों से मनाए जा रहे भगोरिया के जरिए आदिवासी युवा बेहद अनूठे ढंग से अपने जीवनसाथी चुनते आ रहे हैं।
हर साल टेसू (पलाश) के पेड़ों पर खिलने वाले सिंदूरी फूल पश्चिमी मध्यप्रदेश के आदिवासियों को फागुन के आने की खबर दे देते हैं और वे भगोरिया मनाने के लिए तैयार हो जाते हैं।
भगोरिया हाट को आदिवासी युवक-युवतियों का मिलन समारोह कहा जा सकता है। परंपरा के मुताबिक भगोरिया हाट में आदिवासी युवक, युवती को पान का बीड़ा पेश करके अपने प्रेम का मौन इजहार करता है। युवती के बीड़ा ले लेने का मतलब है कि वह भी युवक को पसंद करती है।
इसके बाद यह जोड़ा भगोरिया हाट से भाग जाता है और तब तक घर नहीं लौटता, जब तक दोनों के परिवार उनकी शादी के लिए रजामंद नहीं हो जाते।
बहरहाल, आधुनिकता का रंग प्रेम की इस सदियों पुरानी जनजातीय परंपरा पर भी गहराता जा रहा है। जनजातीय संस्कृति के जानकार बताते हैं कि भगोरिया हाट अब मेलों में बदल गए हैं और इनमें परंपरागत तरीके से जीवनसाथी चुनने के दृश्य उतनी प्रमुखता से नहीं दिखते। मगर वक्त के तमाम बदलावों के बावजूद भगोरिया का उल्लास जस का तस बना हुआ है।
आदिवासी टोलियां इस बार भी ढोल और मांदल (एक तरह का बाजा) की थाप और बांसुरी की स्वर लहरियों पर भगोरिया हाट में सुध बुध बिसराकर झूमने को बेचैन हैं। जनजाति के परंपरागत सुरों में हालांकि अब डीजे साउंड भी खूब घुलमिल गया है।
भगोरिया की मस्ती को आंखों में कैद करने के लिये पश्चिमी मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल जिलों में एक मार्च से बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटकों के उमड़ने की उम्मीद है। सैलानियों की इस बाढ़ को भुनाने के लिए मध्यप्रदेश पर्यटन विकास निगम भी तैयार है।
निगम के क्षेत्रीय प्रबंधक एमएन जमाली के अनुसार सैलानियों के लिए तीन रात और चार दिन का विशेष भगोरिया पैकेज तैयार किया गया है। इस पैकेज के तहत पर्यटकों को आदिवासी अंचलों के अलग-अलग भगोरिया हाटों की सैर कराई जाएगी और उन्हें जनजातीय संस्कृति से रूबरू कराया जाएगा।
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