बाबा रामदेव काले धन के मुद्दे पर केंद्र सरकार को घेरते आ रहे हैं। लेकिन 'तहलका' पत्रिका ने योग गुरु और उनके ट्रस्टों के कामकाज पर एक रिपोर्ट प्रकाशित कर उनके 'काले' सच को सामने लाने का दावा किया है।
तहलका में 'बाबा रामदेव्ज एपिक स्विंडल' शीर्षक से प्रकाशित रिपोर्ट में बाबा रामदेव से जुड़े ट्रस्टों पर टैक्स चोरी के सनसनीखेज आरोप लगाए गए हैं। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2004-05 में बाबा रामदेव से जुड़े ट्रस्ट दिव्य फार्मेसी ने 6, 73, 000 रुपये की दवाओं की बिक्री दिखाकर 53000 रुपये बिक्री कर के तौर पर चुकाए। लेकिन रिपोर्ट में कहा गया है कि जिस तरह से पतंजलि योग पीठ के बाहर लोगों को हुजूम लगा रहता था, उस हिसाब से आयुर्वेदिक दवाओं का यह आंकड़ा बेहद कम था।
पीठ पूरे देश में और विदेशों में दवाएं पार्सल के जरिए भी भेजता था। रामदेव की लोकप्रियता और उनकी दवाओं की बिक्री को देखते हुए उत्तराखंड के बिक्री कर विभाग (एसटीओ) को बाबा रामदेव के ट्रस्ट के बिक्री के आंकड़ों पर शक हुआ। एसटीओ ने उत्तराखंड के सभी डाकखानों से सूचना मांगी। डाकखाने से मिली जानकारी ने एसटीओ के शक को पुख्ता कर दिया। तहलका में छपी रिपोर्ट में डाकखानों से मिली सूचना के हवाले से कहा गया है कि वित्त वर्ष 2004-05 में दिव्य फार्मेसी ने 2509.256 किलो ग्राम दवाएं 3353 पार्सल के जरिए भेजा था। इन पार्सलों के अलावा 13,13000 रुपये के वीपीपी भी किए गए थे। इसी वित्त वर्ष में दिव्य फार्मेसी को 17, 50, 000 रुपये के मनी ऑर्डर मिले थे।
इसी सूचना के आधार पर बिक्री कर विभाग की विशेष जांच शाखा (एसआईबी) ने दिव्य फार्मेसी में छापा मारा। तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर जगदीश राणा ने छापे के दौरान एसआईबी टीम का नेतृत्व किया था। रिपोर्ट में राणा ने कहा, 'तब तक मैं भी रामदेव जी का सम्मान करता था। लेकिन वह कर चोरी का सीधा-सीधा मामला था।' राणा के मुताबिक उस मामले में ट्रस्ट ने करीब 5 करोड़ रुपये की टैक्स चोरी की थी। पत्रिका ने इन्हीं तथ्यों के आधार पर बाबा रामदेव के काले धन के आंदोलन और सरकार पर काले धन को संरक्षण देने के आरोपों पर सवाल उठाए हैं।
तहलका में छपी रिपोर्ट के मुताबिक उस दौरान बाबा के ट्रस्ट पर पड़े छापे से तत्कालीन राज्यपाल सुदर्शन अग्रवाल बहुत नाराज हुए थे। उन्होंने राज्य सरकार को छापे से जुड़ी रिपोर्ट देने को कहा। बाबा रामदेव ने तब आरोप लगाया था कि छापे के दौरान बिक्री कर विभाग के अधिकारियों ने गलत बर्ताव पेश किया था। लेकिन सरकार ने इन आरोपों को बेबुनियाद बताया था।
रिपोर्ट के मुताबिक उत्तराखंड के कई अधिकारी यह मानते हैं कि छापे की वजह से राणा पर जबर्दस्त दबाव पड़ा था। इन अधिकारियों के मुताबिक राणा पर इतना दबाव पड़ा कि उन्हें चार साल पहले ही रिटायरमेंट लेना पड़ा। पत्रिका के मुताबिक बताया जाता है कि उस छापे के बाद एसआईबी के छापे के बाद न तो केंद्र और न ही राज्य सरकार के किसी विभाग ने आज तक बाबा रामदेव के आश्रमों या ट्रस्टों पर छापा मारा है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि बिक्री कर की चोरी करना सिर्फ पूरे घपले का एक हिस्सा है। आरोप है कि दिव्य फार्मेसी ट्रस्ट दूसरे तरीकों से भी कर चोरी कर रहा है। तहलका का दावा है कि उसके पास ऐसे कागजात हैं, जो साबित करते हैं कि दिव्य फार्मेसी ने 30,17000 रुपये कीमत की दवाएं बाबा रामदेव के दूसरे ट्रस्ट दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट को ट्रांसफर किए। ट्रस्ट की ओर से दिए गए आयकर रिटर्न में बताया गया कि सभी दवाएं गरीब और जरूरतमंदों में मुफ्त में बांट दी गई। लेकिन तत्कालीन बिक्री कर अधिकारियों का कहना है कि इन दवाओं को कनखल में मौजूद दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट ले जाकर बेचा गया। इस ट्रस्ट के नजदीक रहने वाले एक शख्स के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले कई बरसों से दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट से गरीबों को मुफ्त दवा नहीं मिली है।
आरोप है कि दिव्य फार्मेसी ट्रस्ट बाबा रामदेव द्वारा चलाए जा रहे अलग-अलग ट्रस्टों को दवाएं सप्लाई कर रहा है। बताया जाता है कि आज तक दिव्य योग मंदिर और पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट बिक्री कर विभाग में पंजीकृत तक नहीं हैं। नियमों के मुताबिक गैर पंजीकृत ट्रस्ट बिना औपचारिकताएं पूरी किए कुछ भी बेच नहीं सकते हैं। लेकिन रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसे ट्रस्ट लाखों रुपये की दवाएं बेच रहे हैं।
तहलका में 'बाबा रामदेव्ज एपिक स्विंडल' शीर्षक से प्रकाशित रिपोर्ट में बाबा रामदेव से जुड़े ट्रस्टों पर टैक्स चोरी के सनसनीखेज आरोप लगाए गए हैं। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2004-05 में बाबा रामदेव से जुड़े ट्रस्ट दिव्य फार्मेसी ने 6, 73, 000 रुपये की दवाओं की बिक्री दिखाकर 53000 रुपये बिक्री कर के तौर पर चुकाए। लेकिन रिपोर्ट में कहा गया है कि जिस तरह से पतंजलि योग पीठ के बाहर लोगों को हुजूम लगा रहता था, उस हिसाब से आयुर्वेदिक दवाओं का यह आंकड़ा बेहद कम था।
पीठ पूरे देश में और विदेशों में दवाएं पार्सल के जरिए भी भेजता था। रामदेव की लोकप्रियता और उनकी दवाओं की बिक्री को देखते हुए उत्तराखंड के बिक्री कर विभाग (एसटीओ) को बाबा रामदेव के ट्रस्ट के बिक्री के आंकड़ों पर शक हुआ। एसटीओ ने उत्तराखंड के सभी डाकखानों से सूचना मांगी। डाकखाने से मिली जानकारी ने एसटीओ के शक को पुख्ता कर दिया। तहलका में छपी रिपोर्ट में डाकखानों से मिली सूचना के हवाले से कहा गया है कि वित्त वर्ष 2004-05 में दिव्य फार्मेसी ने 2509.256 किलो ग्राम दवाएं 3353 पार्सल के जरिए भेजा था। इन पार्सलों के अलावा 13,13000 रुपये के वीपीपी भी किए गए थे। इसी वित्त वर्ष में दिव्य फार्मेसी को 17, 50, 000 रुपये के मनी ऑर्डर मिले थे।
इसी सूचना के आधार पर बिक्री कर विभाग की विशेष जांच शाखा (एसआईबी) ने दिव्य फार्मेसी में छापा मारा। तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर जगदीश राणा ने छापे के दौरान एसआईबी टीम का नेतृत्व किया था। रिपोर्ट में राणा ने कहा, 'तब तक मैं भी रामदेव जी का सम्मान करता था। लेकिन वह कर चोरी का सीधा-सीधा मामला था।' राणा के मुताबिक उस मामले में ट्रस्ट ने करीब 5 करोड़ रुपये की टैक्स चोरी की थी। पत्रिका ने इन्हीं तथ्यों के आधार पर बाबा रामदेव के काले धन के आंदोलन और सरकार पर काले धन को संरक्षण देने के आरोपों पर सवाल उठाए हैं।
तहलका में छपी रिपोर्ट के मुताबिक उस दौरान बाबा के ट्रस्ट पर पड़े छापे से तत्कालीन राज्यपाल सुदर्शन अग्रवाल बहुत नाराज हुए थे। उन्होंने राज्य सरकार को छापे से जुड़ी रिपोर्ट देने को कहा। बाबा रामदेव ने तब आरोप लगाया था कि छापे के दौरान बिक्री कर विभाग के अधिकारियों ने गलत बर्ताव पेश किया था। लेकिन सरकार ने इन आरोपों को बेबुनियाद बताया था।
रिपोर्ट के मुताबिक उत्तराखंड के कई अधिकारी यह मानते हैं कि छापे की वजह से राणा पर जबर्दस्त दबाव पड़ा था। इन अधिकारियों के मुताबिक राणा पर इतना दबाव पड़ा कि उन्हें चार साल पहले ही रिटायरमेंट लेना पड़ा। पत्रिका के मुताबिक बताया जाता है कि उस छापे के बाद एसआईबी के छापे के बाद न तो केंद्र और न ही राज्य सरकार के किसी विभाग ने आज तक बाबा रामदेव के आश्रमों या ट्रस्टों पर छापा मारा है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि बिक्री कर की चोरी करना सिर्फ पूरे घपले का एक हिस्सा है। आरोप है कि दिव्य फार्मेसी ट्रस्ट दूसरे तरीकों से भी कर चोरी कर रहा है। तहलका का दावा है कि उसके पास ऐसे कागजात हैं, जो साबित करते हैं कि दिव्य फार्मेसी ने 30,17000 रुपये कीमत की दवाएं बाबा रामदेव के दूसरे ट्रस्ट दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट को ट्रांसफर किए। ट्रस्ट की ओर से दिए गए आयकर रिटर्न में बताया गया कि सभी दवाएं गरीब और जरूरतमंदों में मुफ्त में बांट दी गई। लेकिन तत्कालीन बिक्री कर अधिकारियों का कहना है कि इन दवाओं को कनखल में मौजूद दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट ले जाकर बेचा गया। इस ट्रस्ट के नजदीक रहने वाले एक शख्स के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले कई बरसों से दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट से गरीबों को मुफ्त दवा नहीं मिली है।
आरोप है कि दिव्य फार्मेसी ट्रस्ट बाबा रामदेव द्वारा चलाए जा रहे अलग-अलग ट्रस्टों को दवाएं सप्लाई कर रहा है। बताया जाता है कि आज तक दिव्य योग मंदिर और पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट बिक्री कर विभाग में पंजीकृत तक नहीं हैं। नियमों के मुताबिक गैर पंजीकृत ट्रस्ट बिना औपचारिकताएं पूरी किए कुछ भी बेच नहीं सकते हैं। लेकिन रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसे ट्रस्ट लाखों रुपये की दवाएं बेच रहे हैं।
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