राकेश माथुर ><><><><><
पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने उस रहस्य पर से पर्दा उठा दिया है जो कई वर्षों से भारतीय राजनीति में घूम रहा था। अपनी आत्मकथा के अगले हिस्से "टर्निंग प्वाइंट" में उन्होंने बताया है कि इटली में जन्मी सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनाने में उन्हें कोई आपत्ति नहीं थी। अब तक माना जाता रहा है कि उन्होंने ही सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया।
सोनिया ने चौंकाया
पूर्व राष्ट्रपति डा. कलाम ने इस किताब में लिखा है कि उनके कार्यालय ने तो सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री के रूप में सरकार बनाने का न्योता देने का पत्र तैयार कर लिया था। लेकिन खुद सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह का नाम प्रस्तावित कर उन्हें चौंका दिया था।
"यह निश्चित रूप से मुझे और राष्ट्रपति सचिवालय को चौंकाने वाला कदम था क्योंकि सचिवालय को अब मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री नियुक्ति करने के लिए नया पत्र बनाने के लिए मेहनत करनी पड़ी।"
हजारों ई-मेल
डा. कलाम ने लिखा है कि उन्हें व्यक्तियों, संगठनों और दलों से हजारों ई-मेल और पत्र मिले थे कि सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनाने का दावा स्वीकार न किया जाए। वे सभी पत्र उन्होंने बिना कोई टिप्पणी लिखे सरकार की विभिन्न एजेंसियों को उनकी सूचना के लिए भिजवा दिए थे। "मुझसे मिलने आने वाले राजनेता रोज दबाव डाल रहे थे कि सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री न बनाया जाए।" डा. कलाम ने लिखा है कि "अगर सोनिया गांधी खुद प्रधानमंत्री बनने का प्रस्ताव रखतीं तो राष्ट्रपति के रूप में वे उन्हें मना नहीं कर सकते थे।"
इस्तीफा तैयार रखा था
डा. कलाम ने यह राज भी खोला है कि बिहार विधानसभा को आधी रात को भंग करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उन्होंने अपना इस्तीफा लिख लिया था। बाद में प्रधानमंत्री के आग्रह पर उन्होंने वह विचार छोड़ दिया। सुप्रीम कोर्ट ने 23 मई 2005 को बिहार विधानसभा भंग किए जाने को असंवैधानिक करार दिया था।
डा. कलाम ने लिखा है कि वे मास्को में थे जब प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने उन्हें दो बार फोन किया और बताया कि राज्यपाल की सलाह पर कैबिनेट ने बिहार विधानसभा भंग करने का निर्णय किया है। डा. कलाम ने यह भी लिखा है कि उन्होंने प्रधानमंत्री से पूछा था कि इसकी इतनी जल्दी क्या है। वह तो छह माह के लिए पहले ही निलंबित है। लेकिन बाद में वे मान गए क्योंकि उन्हें लगा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने विधानसभा भंग करने का निश्चय कर लिया है वह पलटने वाली नहीं है।
वे मानते हैं कि "कोर्ट में सरकार ने अपना पक्ष सही ढंग से नहीं रखा इसलिए कोर्ट ने कैबिनेट के खिलाफ सख्त टिप्पणी की। और उसकी जिम्मेवारी मुझे लेनी पड़ी।"
पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने उस रहस्य पर से पर्दा उठा दिया है जो कई वर्षों से भारतीय राजनीति में घूम रहा था। अपनी आत्मकथा के अगले हिस्से "टर्निंग प्वाइंट" में उन्होंने बताया है कि इटली में जन्मी सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनाने में उन्हें कोई आपत्ति नहीं थी। अब तक माना जाता रहा है कि उन्होंने ही सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया।
सोनिया ने चौंकाया
पूर्व राष्ट्रपति डा. कलाम ने इस किताब में लिखा है कि उनके कार्यालय ने तो सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री के रूप में सरकार बनाने का न्योता देने का पत्र तैयार कर लिया था। लेकिन खुद सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह का नाम प्रस्तावित कर उन्हें चौंका दिया था।
"यह निश्चित रूप से मुझे और राष्ट्रपति सचिवालय को चौंकाने वाला कदम था क्योंकि सचिवालय को अब मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री नियुक्ति करने के लिए नया पत्र बनाने के लिए मेहनत करनी पड़ी।"
हजारों ई-मेल
डा. कलाम ने लिखा है कि उन्हें व्यक्तियों, संगठनों और दलों से हजारों ई-मेल और पत्र मिले थे कि सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनाने का दावा स्वीकार न किया जाए। वे सभी पत्र उन्होंने बिना कोई टिप्पणी लिखे सरकार की विभिन्न एजेंसियों को उनकी सूचना के लिए भिजवा दिए थे। "मुझसे मिलने आने वाले राजनेता रोज दबाव डाल रहे थे कि सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री न बनाया जाए।" डा. कलाम ने लिखा है कि "अगर सोनिया गांधी खुद प्रधानमंत्री बनने का प्रस्ताव रखतीं तो राष्ट्रपति के रूप में वे उन्हें मना नहीं कर सकते थे।"
इस्तीफा तैयार रखा था
डा. कलाम ने यह राज भी खोला है कि बिहार विधानसभा को आधी रात को भंग करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उन्होंने अपना इस्तीफा लिख लिया था। बाद में प्रधानमंत्री के आग्रह पर उन्होंने वह विचार छोड़ दिया। सुप्रीम कोर्ट ने 23 मई 2005 को बिहार विधानसभा भंग किए जाने को असंवैधानिक करार दिया था।
डा. कलाम ने लिखा है कि वे मास्को में थे जब प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने उन्हें दो बार फोन किया और बताया कि राज्यपाल की सलाह पर कैबिनेट ने बिहार विधानसभा भंग करने का निर्णय किया है। डा. कलाम ने यह भी लिखा है कि उन्होंने प्रधानमंत्री से पूछा था कि इसकी इतनी जल्दी क्या है। वह तो छह माह के लिए पहले ही निलंबित है। लेकिन बाद में वे मान गए क्योंकि उन्हें लगा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने विधानसभा भंग करने का निश्चय कर लिया है वह पलटने वाली नहीं है।
वे मानते हैं कि "कोर्ट में सरकार ने अपना पक्ष सही ढंग से नहीं रखा इसलिए कोर्ट ने कैबिनेट के खिलाफ सख्त टिप्पणी की। और उसकी जिम्मेवारी मुझे लेनी पड़ी।"
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