नई दिल्ली। भारत में जमीन की रजिस्ट्री, खसरा-खतौनी की नकल जैसी भूमि प्रशासन संबंधी सेवाओं के लिए हर साल 70 करोड़ डॉलर की भारी भरकम राशि घूस के रूप में दी जाती है। यह रकम करीब 3,700 करोड़ रुपये बैठती है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन [एफएओ] और ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के साझा अध्ययन में यह जानकारी दी गई है।
दोनों संगठनों ने संयुक्त रूप से तैयार अध्ययन पत्र 'भू-संपत्ति क्षेत्र में भ्रष्टाचार' शीर्षक से तैयार किया है। इसमें कहा गया है कि कमजोर प्रशासन की वजह से जमीन से जुड़े मामलों में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला है। इसके अनुसार जमीन संबंधी मामलों में भ्रष्टाचार देश के विकास के रास्ते में बड़ी बाधा बन कर सामने आया है। यह अध्ययन 61 से अधिक देशों में किया गया।
अध्ययन के मुताबिक, जमीन को लेकर निचले स्तर पर भ्रष्टाचार छोटी-छोटी रिश्वत के रूप में है। वहीं, ऊंचे स्तर पर सरकारी ताकत और राजनीति रुतबे के दुरुपयोग की वजह से यह घोटालों के रूप में सामने आता रहता है। जमीन से जुड़ी प्रशासनिक सेवाओं में भू-कानून, रजिस्ट्री, मूल्यांकन, कराधान, जमीन उपयोग में बदलाव, भूमि आवंटन और संबंधित जानकारी शामिल हैं। अध्ययन पत्र ने यह भी साफ किया है कि जमीन संबंधी भ्रष्टाचार भारत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरी दुनिया में फैला हुआ है। उदाहरण के तौर पर केन्या में वर्ष 2011 में जमीन संबंधी हर मामले में औसतन 65 डॉलर रिश्वत के रूप में चुकाये गए। मेक्सिकों में जमीन संबंधी सेवाओं के लिए बहुत ज्यादा घूस देनी पड़ती है। इस मामले में बांग्लादेश की स्थिति सबसे ज्यादा खराब है।
अध्ययन पत्र में भ्रष्टाचार और जमीन के इस्तेमाल के बीच संबंध का भी विश्लेषण किया गया है। इसके अनुसार जमीन पर दबाव बहुत ज्यादा बढ़ गया है। नए क्षेत्रों में खेती हो रही है। शहरों का विस्तार खेती की जमीन पर हो रहा है। भू-क्षरण और जलवायु परिवर्तन के कारण भूमि बंजर हो रही है। ऐसे में बहुत कम जमीन के लिए बहुत ज्यादा लोगों के बीच मारा-मारी है।
दोनों संगठनों ने संयुक्त रूप से तैयार अध्ययन पत्र 'भू-संपत्ति क्षेत्र में भ्रष्टाचार' शीर्षक से तैयार किया है। इसमें कहा गया है कि कमजोर प्रशासन की वजह से जमीन से जुड़े मामलों में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला है। इसके अनुसार जमीन संबंधी मामलों में भ्रष्टाचार देश के विकास के रास्ते में बड़ी बाधा बन कर सामने आया है। यह अध्ययन 61 से अधिक देशों में किया गया।
अध्ययन के मुताबिक, जमीन को लेकर निचले स्तर पर भ्रष्टाचार छोटी-छोटी रिश्वत के रूप में है। वहीं, ऊंचे स्तर पर सरकारी ताकत और राजनीति रुतबे के दुरुपयोग की वजह से यह घोटालों के रूप में सामने आता रहता है। जमीन से जुड़ी प्रशासनिक सेवाओं में भू-कानून, रजिस्ट्री, मूल्यांकन, कराधान, जमीन उपयोग में बदलाव, भूमि आवंटन और संबंधित जानकारी शामिल हैं। अध्ययन पत्र ने यह भी साफ किया है कि जमीन संबंधी भ्रष्टाचार भारत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरी दुनिया में फैला हुआ है। उदाहरण के तौर पर केन्या में वर्ष 2011 में जमीन संबंधी हर मामले में औसतन 65 डॉलर रिश्वत के रूप में चुकाये गए। मेक्सिकों में जमीन संबंधी सेवाओं के लिए बहुत ज्यादा घूस देनी पड़ती है। इस मामले में बांग्लादेश की स्थिति सबसे ज्यादा खराब है।
अध्ययन पत्र में भ्रष्टाचार और जमीन के इस्तेमाल के बीच संबंध का भी विश्लेषण किया गया है। इसके अनुसार जमीन पर दबाव बहुत ज्यादा बढ़ गया है। नए क्षेत्रों में खेती हो रही है। शहरों का विस्तार खेती की जमीन पर हो रहा है। भू-क्षरण और जलवायु परिवर्तन के कारण भूमि बंजर हो रही है। ऐसे में बहुत कम जमीन के लिए बहुत ज्यादा लोगों के बीच मारा-मारी है।
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