जयपुर, 28 जनवरी।
प्रशासन शहरों के संग अभियान के दौरान सरकार के ‘सभी को पट्टा देने के दावे सरकार पर ही भारी पड़ सकते हैं। ऐसे ही एक मामले में पुलिस कमिश्नर कार्यालय ‘गवर्नमेंट हॉस्टल के परिसर का भी पट्टा लेने का आवेदन नगर निगम में कर दिया गया।
मजेदार बात यह है कि इस आवेदन के बाद पटवारी की रिपोर्ट भी हो गई और प्रक्रिया आगे बढ़ गई। बाद में निगम अधिकारियों ने जब मौका मुआयना किया तो मामला खुला।
दरअसल ‘गवर्नमेंट हॉस्टल परिसर में वर्तमान कमिश्नर कार्यालय के पीछे की ओर बने कमरों में रह रहे परिवारों के सदस्यों में से 4 लोगों ने निगम में स्टेट ग्रांट एक्ट के तहत पट्टे लेने के लिए आवेदन कर दिया। आवेदन के बाद पटवारी ने इस संबंध में मौका रिपोर्ट भी कर दी कि उक्त भूमि आबादी भूमि है और पत्रावली आगे बढ़ा दी गई। बाद में निगम की सिविल लाइन जोन के राजस्व अधिकारी और संबंधित एईएन ने मौका मुआयना किया तो पता चला कि स्टेट ग्रांट एक्ट के तहत जो पट्टा मांगा गया है वह पुलिस कमिश्नर कार्यालय परिसर की जमीन का है।
अब अधिकारी परेशान हैं कि पुलिस कमिश्नर कार्यालय परिसर (गवर्नमेंट हॉस्टल) की जमीन का पट्टा आखिर जारी कैसे करें? अब जांच का विषय यह है कि आखिर इस आवेदन की पत्रावली ही जमा कैसे कर ली गई क्योंकि स्टेट ग्रंाट एक्ट के तहत पट्टों में कम से कम 40 साल का कब्जा दर्शाना जरूरी होता है और यदि कब्जा भी दर्शा दिया तो कम से कम मौके का पता देखकर तो पत्रावली जमा करने से पहले जांच की ही जानी चाहिए थी। अब निगम अधिकारी इस बात पर भी माथापच्ची करने में जुटे हैं कि पटवारी ने भी किस आधार पर इसे आबादी भूमि माना और कैसे इन कब्जों को जायज मानकर पट्टे के लिए पत्रावली आगे चला दी। अधिकारियों के सामने परेशानी इस बात की है कि इस परिसर की जमीन का पट्टा कैसे दिया जाए, जहां सालों से सरकारी कार्यालय चल रहे हैं।
करीब 4 आवेदन यहां की जमीन के पट्टे के लिए स्टेट ग्रांट के तहत किए हैं। पटवारी ने आबादी भूमि की रिपोर्ट भी कर दी। हमने मौका देखा तो मामला खुला। कुछ परिवार हैं जिन्हें कभी साफ-सफाई के लिए यहां रखा होगा, जिन्होंने अब पट्टे के लिए ही आवेदन कर दिया।
दिनेश पारीक, राजस्व अधिकारी,
प्रशासन शहरों के संग अभियान के दौरान सरकार के ‘सभी को पट्टा देने के दावे सरकार पर ही भारी पड़ सकते हैं। ऐसे ही एक मामले में पुलिस कमिश्नर कार्यालय ‘गवर्नमेंट हॉस्टल के परिसर का भी पट्टा लेने का आवेदन नगर निगम में कर दिया गया।
मजेदार बात यह है कि इस आवेदन के बाद पटवारी की रिपोर्ट भी हो गई और प्रक्रिया आगे बढ़ गई। बाद में निगम अधिकारियों ने जब मौका मुआयना किया तो मामला खुला।
दरअसल ‘गवर्नमेंट हॉस्टल परिसर में वर्तमान कमिश्नर कार्यालय के पीछे की ओर बने कमरों में रह रहे परिवारों के सदस्यों में से 4 लोगों ने निगम में स्टेट ग्रांट एक्ट के तहत पट्टे लेने के लिए आवेदन कर दिया। आवेदन के बाद पटवारी ने इस संबंध में मौका रिपोर्ट भी कर दी कि उक्त भूमि आबादी भूमि है और पत्रावली आगे बढ़ा दी गई। बाद में निगम की सिविल लाइन जोन के राजस्व अधिकारी और संबंधित एईएन ने मौका मुआयना किया तो पता चला कि स्टेट ग्रांट एक्ट के तहत जो पट्टा मांगा गया है वह पुलिस कमिश्नर कार्यालय परिसर की जमीन का है।
अब अधिकारी परेशान हैं कि पुलिस कमिश्नर कार्यालय परिसर (गवर्नमेंट हॉस्टल) की जमीन का पट्टा आखिर जारी कैसे करें? अब जांच का विषय यह है कि आखिर इस आवेदन की पत्रावली ही जमा कैसे कर ली गई क्योंकि स्टेट ग्रंाट एक्ट के तहत पट्टों में कम से कम 40 साल का कब्जा दर्शाना जरूरी होता है और यदि कब्जा भी दर्शा दिया तो कम से कम मौके का पता देखकर तो पत्रावली जमा करने से पहले जांच की ही जानी चाहिए थी। अब निगम अधिकारी इस बात पर भी माथापच्ची करने में जुटे हैं कि पटवारी ने भी किस आधार पर इसे आबादी भूमि माना और कैसे इन कब्जों को जायज मानकर पट्टे के लिए पत्रावली आगे चला दी। अधिकारियों के सामने परेशानी इस बात की है कि इस परिसर की जमीन का पट्टा कैसे दिया जाए, जहां सालों से सरकारी कार्यालय चल रहे हैं।
भगवान भरोसे आवेदन
नगर निगम में इन दिनों इसी अंदाज में पट्टों के आवेदन स्वीकार किए जा रहे हैं। कुछ जोनों में आवेदक को कोई जानकारी नहीं दी जा रही है, कागज लेकर आने वालों को फाइल लेकर रसीद दे दी जाती है। वहीं, कुछ जोनों में पत्रावलियों को लेकर खासी माथापच्ची की जा रही है। इसके बाद भी इस तरह की घटनाएं हो रही हैं। इसी तरह से आवेदनों के निस्तारण के हाल भी बेहाल हैं। भारी संख्या में आवेदन लंबित हो चले हैं लेकिन उन पर अभी तक तो संबंधित अधिकारी-कर्मचारी की रिपोर्ट तक नहीं हो पाई हैं। एम्पावर्ड कमेटी के स्तर पर भी पत्रावलियों का अनुमोदन समय पर नहीं हो पा रहा है।करीब 4 आवेदन यहां की जमीन के पट्टे के लिए स्टेट ग्रांट के तहत किए हैं। पटवारी ने आबादी भूमि की रिपोर्ट भी कर दी। हमने मौका देखा तो मामला खुला। कुछ परिवार हैं जिन्हें कभी साफ-सफाई के लिए यहां रखा होगा, जिन्होंने अब पट्टे के लिए ही आवेदन कर दिया।
दिनेश पारीक, राजस्व अधिकारी,
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