यूपी में प्रतापगढ़ जिले के बलीपुर गांव में डीएसपी जिया उल हक को श्ानिवार की रात दबंगों ने लाठियों से पीटा, जीप से खींचकर जमीन पर घसीटा, फिर गोली मार दी। उन्हें पैरों में दो गोली मारी गई और फिर एक सीने में।
रविवार को चार डाक्टरों के पैनल ने हक का पोस्टमार्टम किया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में दो गोलियां पैर व एक गोली सीने में पाई गई। शरीर के कई हिस्सों में चोट भी लगीं थीं। चोट से जाहिर था कि हक को लाठियों से पीटने के बाद गोली मारी गई।
2009 में आए पुलिस सेवा में
जिया उल हक उत्तर प्रदेश के एक बेहद पिछड़े जिले देवरिया के नूनखार जुआफर गांव के रहने वाले थे। 21 जनवरी 2012 को मेडिकल छात्रा परवीन आजाद से उनकी शादी हुई थी। वे सीवान जिले की हैं।
2009 में राजकीय पुलिस सेवा में (पीपीएस) चुने जाने के बाद जियाउल हक नौकरी के साथ ही आईएएस की तैयारी भी कर रहे थे।
पिछले साल कुंडा में नवाबगंज के अस्थान में हुए सांप्रदायिक दंगों के बाद वहां तैनात क्षेत्राधिकारी (सीओ) खलीकुज्जमां को हटा दिया गया था और उनकी जगह जिया उल हक को तैनात किया गया था।
सितंबर, 2012 में कुंडा के बाघराय थाना क्षेत्र के बरना बिहरिया गांव में स्कूल में आपसी विवाद में घायल छात्र की मौत के बाद फैले सांप्रदायिक तनाव को जिया उल हक ने अपनी सूझबूझ से शांत करा दिया था।
एक साल में ही छूट गया साथ
लखनऊ के बाबू बनारसी दास मेडिकल कॉलेज से दंत चिकित्सा की पढ़ाई कर रहीं परवीन आजाद की मेंहदी एक वर्ष के अंदर ही धूल गई। 21 जनवरी 2012 को जियाउल हक के साथ उनका निकाह हुआ था। अभी वे भविष्य की ताने-बाने ही बुन रहीं थीं कि दबंगों ने उनका सुहाग उजाड़ दिया।
रविवार को जियाउल हक को चार दिन की छुट्टी लेकर पत्नी के पास जाना था। अवकाश पर जाना था। वह एक दिन पहले ही छुट्टी का आवेदन लेकर प्रतापगढ़ गए थे। वहां से छुट्टी मिलने के बाद कुंडा चले गए।
शनिवार देर रात वह लखनऊ जाते। सीओ ने पत्नी परवीन आजाद को अपने आने के सूचना भी दे रखी थी। वे पति के आने का इंतजार कर रही थी लेकिन उनके मौत की खबर आ गई।
हक ने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई देवरियां से ही की थी। 1998 में उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में स्नातक में प्रवेश लिया। 9 वर्ष तक इलाहाबाद के मुस्लिम बोर्डिंग हॉस्टल में रहकर उन्होंने पढ़ाई और सिविल सेवा की तैयारी की थी। 2009 में उनका पुलिस सेवा के लिए चयन हुआ था।
मेरा बेटा वर्दी के लिए शहीद हो गया
जियाउल के पिता शमशुल हक (60 वर्ष) और मां पिछले काफी समय से बीमार चल रहे हैं। शमशुल हक की आंख का पिछले ही दिनों आपरेशन हुआ था तो मां का इलाज देवरिया में चल रहा है। जवान बेटे की मौत से दोनों बदहवाश हैं।
रविवार को जब लोग उनसे मिलने पहुंचे तो उनका दर्द फूट पड़ा।
जियाउल के चचेरे भाई शाहआलम ने बताया कि चचा (जियाउल के पिता) सिर्फ यही कह रहे हैं कि उनका बेटा तो वर्दी के लिए शहीद हो गया लेकिन अगर साथी भी फर्ज निभाते तो शायद वह आज जिंदा होता।
उन्होंने कहा, 'साथ में गए साथी उसे छोड़कर भाग न निकलते और वहां मोर्चा संभालते तो शायद यह नौबत न आती। वह चार घंटा इस तरह अकेले न पड़ा रहता। उनका बेटा तो ऐसा न था। पता नहीं उसके साथ गए लोग छोड़कर क्यों भाग गए। उसने तो किसी का कुछ बिगाड़ा नहीं था जो लोगों ने उसे इस तरह मार डाला। समझ में नहीं आ रहा।
रविवार को चार डाक्टरों के पैनल ने हक का पोस्टमार्टम किया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में दो गोलियां पैर व एक गोली सीने में पाई गई। शरीर के कई हिस्सों में चोट भी लगीं थीं। चोट से जाहिर था कि हक को लाठियों से पीटने के बाद गोली मारी गई।
2009 में आए पुलिस सेवा में
जिया उल हक उत्तर प्रदेश के एक बेहद पिछड़े जिले देवरिया के नूनखार जुआफर गांव के रहने वाले थे। 21 जनवरी 2012 को मेडिकल छात्रा परवीन आजाद से उनकी शादी हुई थी। वे सीवान जिले की हैं।
2009 में राजकीय पुलिस सेवा में (पीपीएस) चुने जाने के बाद जियाउल हक नौकरी के साथ ही आईएएस की तैयारी भी कर रहे थे।
पिछले साल कुंडा में नवाबगंज के अस्थान में हुए सांप्रदायिक दंगों के बाद वहां तैनात क्षेत्राधिकारी (सीओ) खलीकुज्जमां को हटा दिया गया था और उनकी जगह जिया उल हक को तैनात किया गया था।
सितंबर, 2012 में कुंडा के बाघराय थाना क्षेत्र के बरना बिहरिया गांव में स्कूल में आपसी विवाद में घायल छात्र की मौत के बाद फैले सांप्रदायिक तनाव को जिया उल हक ने अपनी सूझबूझ से शांत करा दिया था।
एक साल में ही छूट गया साथ
लखनऊ के बाबू बनारसी दास मेडिकल कॉलेज से दंत चिकित्सा की पढ़ाई कर रहीं परवीन आजाद की मेंहदी एक वर्ष के अंदर ही धूल गई। 21 जनवरी 2012 को जियाउल हक के साथ उनका निकाह हुआ था। अभी वे भविष्य की ताने-बाने ही बुन रहीं थीं कि दबंगों ने उनका सुहाग उजाड़ दिया।
रविवार को जियाउल हक को चार दिन की छुट्टी लेकर पत्नी के पास जाना था। अवकाश पर जाना था। वह एक दिन पहले ही छुट्टी का आवेदन लेकर प्रतापगढ़ गए थे। वहां से छुट्टी मिलने के बाद कुंडा चले गए।
शनिवार देर रात वह लखनऊ जाते। सीओ ने पत्नी परवीन आजाद को अपने आने के सूचना भी दे रखी थी। वे पति के आने का इंतजार कर रही थी लेकिन उनके मौत की खबर आ गई।
हक ने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई देवरियां से ही की थी। 1998 में उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में स्नातक में प्रवेश लिया। 9 वर्ष तक इलाहाबाद के मुस्लिम बोर्डिंग हॉस्टल में रहकर उन्होंने पढ़ाई और सिविल सेवा की तैयारी की थी। 2009 में उनका पुलिस सेवा के लिए चयन हुआ था।
मेरा बेटा वर्दी के लिए शहीद हो गया
जियाउल के पिता शमशुल हक (60 वर्ष) और मां पिछले काफी समय से बीमार चल रहे हैं। शमशुल हक की आंख का पिछले ही दिनों आपरेशन हुआ था तो मां का इलाज देवरिया में चल रहा है। जवान बेटे की मौत से दोनों बदहवाश हैं।
रविवार को जब लोग उनसे मिलने पहुंचे तो उनका दर्द फूट पड़ा।
जियाउल के चचेरे भाई शाहआलम ने बताया कि चचा (जियाउल के पिता) सिर्फ यही कह रहे हैं कि उनका बेटा तो वर्दी के लिए शहीद हो गया लेकिन अगर साथी भी फर्ज निभाते तो शायद वह आज जिंदा होता।
उन्होंने कहा, 'साथ में गए साथी उसे छोड़कर भाग न निकलते और वहां मोर्चा संभालते तो शायद यह नौबत न आती। वह चार घंटा इस तरह अकेले न पड़ा रहता। उनका बेटा तो ऐसा न था। पता नहीं उसके साथ गए लोग छोड़कर क्यों भाग गए। उसने तो किसी का कुछ बिगाड़ा नहीं था जो लोगों ने उसे इस तरह मार डाला। समझ में नहीं आ रहा।
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