उत्तर प्रदेश के आयुर्वेद विभाग में 200 करोड़ का घोटाला सामने आया
है। आयुर्वेद विभाग ने नियमों को ताक पर रखकर 800 डाक्टरों को गलत तरीके से
प्रोन्नति दे दी।
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस गड़बड़ी में दोषी पाए गए तत्कालीन आयुर्वेद निदेशक समेत छह अफसरों को निलंबित कर दिया है।
आरोप है कि इन अफसरों ने सुनिश्चित कैयिर प्रोन्नयन (एसीपी) देने में गड़बड़ी कर वर्ष 2010 में 800 डाक्टरों को गलत प्रोन्नति दे दी।मुख्यमंत्री ने पूरे मामले की जांच सतर्कता विभाग (विजिलेंस) से कराने के निर्देश दिए हैं। गड़बड़ी करने वाले मुख्य चिकित्साधिकारियों के खिलाफ भी विभागीय कार्रवाई के आदेश दिए गए हैं।
निलंबित किए गए अफसरों में तत्कालीन आयुर्वेद निदेशक और मौजूदा समय उद्योग विभाग में विशेष सचिव श्रद्धा मिश्रा, तत्कालीन उपसचिव (चिकित्सा अनुभाग-2) जावेद एहतेशाम, तत्कालीन� समीक्षा अधिकारी (चिकित्सा शिक्षा अनुभाग-2) प्रदीप उपाध्याय, तत्कालीन वित्त नियंत्रक आयुर्वेद विभाग पीसी चौधरी, तत्कालीन सहायक औषधि नियंत्रक मंगल दत्त त्रिवेदी और तत्कालीन क्षेत्रीय आयुर्वेद एवं यूनानी अधिकारी, बाराबंकी शशिधर शुक्ला शामिल हैं।
शासन के प्रवक्ता ने बताया कि आयुर्वेद निदेशालय में अफसरों और कर्मचारियों ने वर्ष 2010 में चिकित्साधिकारी (सामुदायिक स्वास्थ्य) को अनियमित तरीके से समयमान वेतनमान एवं वित्तीय स्तरोन्नयन का लाभ पहले की तारीखों से देकर सरकार को आर्थिक नुकसान पहुंचाया।
मुख्य सचिव जावेद उस्मानी के पास यह शिकायत पहुंचने के बाद उन्होंने प्रमुख सचिव वित्त आनंद मिश्रा, प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा जेपी शर्मा और सचिव वेतन आयोग अजय अग्रवाल की एक जांच समिति बना दी।जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में इन सभी को दोषी पाया है। समिति ने बाकायदा आयुर्वेद विभाग के दस्तावेजों की जांच की और उसके बाद अपनी प्रारम्भिक जांच रिपोर्ट मुख्य सचिव को दी।
ऐसे की गई गड़बड़ी
-आयुर्वेद विभाग में चिकित्साधिकारी (सामुदायिक स्वास्थ्य) को एसीपी के देने के लिए 4 मई, 2010 को वित्त विभाग ने एक आदेश किया था। इस आदेश के अनुसार, सभी चिकित्साधिकारियों को नियमित सेवा के दस वर्ष पूर्ण करने पर पहला प्रोन्नयन, इसके छह साल बाद यानी 16 साल पर दूसरा प्रोन्नयन और इसके 10 साल बाद यानी 26 साल पर तीसरा प्रोन्नयन दिया जाना चाहिए।
-वर्ष 2010 में जब पूर्व वित्त नियंत्रक पीसी चौधरी ने इन डाक्टरों का सुनिश्चित कैरियर प्रोन्नयन किया तो शासनादेश को समझने और गणितीय आंकलन में गड़बड़ी की वजह से जिन डाक्टरों को 26 साल पर तीसरा प्रोन्नयन दिया जाना चाहिए, उन्हें उन्होंने 22 वर्ष में ही प्रोन्नयन दे दिया
न केवल उन्होंने आंकलन में गड़बड़ी की, करीब 800 चिकित्साधिकारियों को अनियमित रूप से निदेशालय स्तर से वेतन बैण्ड 37,400-67,000, ग्रेड वेतन 8700 देने के आदेश भी गलत तरीके से दे दिए।
-दूसरी गड़बड़ी वरिष्ठताक्रम के अनुसार सिर्फ 20 फीसदी राजपत्रित सेवा वाले डाक्टरों को ही 14 वर्ष की सेवा पर द्वितीय प्रोन्नत वेतनमान के आदेश पर हुई।
13 मई, 1993 को एक आदेश हुआ था कि 14 वर्ष की सेवा पूर्ण करने के बाद सिर्फ 20 फीसदी डाक्टरों को वरिष्ठताक्रम के अनुसार 10,000-15,600 के वेतनमान वाले डाक्टरों को 12,000-16,500 का वेतनमान दे दिया जाए
साथ ही आठ वर्ष की सेवा पर सभी को प्रथम प्रोन्नत वेतनमान दिया जाए। शासन स्तर पर इसे जून 2010 में 8/14 वर्ष कर दिया गया।
इससे मुख्य चिकित्साधिकारियों ने बगैर शासन के अलग से निर्देश आए ही आठ साल पर प्रथम प्रोन्नत वेतनमान और 14 वर्ष पर दूसरा प्रोन्नत 20 फीसदी की जगह सभी डाक्टरों को देकर वेतनमान का भुगतान कर दिया गया।
शासनादेश में यह बदलाव उपसचिव स्तर पर किया गया था। इसे भी गड़बड़ी माना गया।
-पीसी चौधरी के बाद जब आयुर्वेद विभाग में जे के पांडेय की वित्त नियंत्रक के रूप में नियुक्ति हुई तो उन्होंने जांच में इस मामले को पकड़ा और इसकी शिकायत शासन को की।
19 साल पहले चर्चा में आया था आयुर्वेद निदेशालय
आयुर्वेद निदेशालय 19 साल पहले भी वर्ष 1994-95 में भी चर्चा में आया था। उस वक्त आयुर्वेद विभाग के तत्कालीन निदेशक डा. शिवराज सिंह के कार्यकाल में आयुर्वेद दवा का घोटाला हुआ।
करीब 40 करोड़ के इस घोटाले की जांच भी अब तक न्यायिक प्रक्रिया के तहत लंबित है। इसमें जिलों में फर्जी दवा आपूर्ति दिखाकर भुगतान करने का खेल किया गया था।
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस गड़बड़ी में दोषी पाए गए तत्कालीन आयुर्वेद निदेशक समेत छह अफसरों को निलंबित कर दिया है।
आरोप है कि इन अफसरों ने सुनिश्चित कैयिर प्रोन्नयन (एसीपी) देने में गड़बड़ी कर वर्ष 2010 में 800 डाक्टरों को गलत प्रोन्नति दे दी।मुख्यमंत्री ने पूरे मामले की जांच सतर्कता विभाग (विजिलेंस) से कराने के निर्देश दिए हैं। गड़बड़ी करने वाले मुख्य चिकित्साधिकारियों के खिलाफ भी विभागीय कार्रवाई के आदेश दिए गए हैं।
निलंबित किए गए अफसरों में तत्कालीन आयुर्वेद निदेशक और मौजूदा समय उद्योग विभाग में विशेष सचिव श्रद्धा मिश्रा, तत्कालीन उपसचिव (चिकित्सा अनुभाग-2) जावेद एहतेशाम, तत्कालीन� समीक्षा अधिकारी (चिकित्सा शिक्षा अनुभाग-2) प्रदीप उपाध्याय, तत्कालीन वित्त नियंत्रक आयुर्वेद विभाग पीसी चौधरी, तत्कालीन सहायक औषधि नियंत्रक मंगल दत्त त्रिवेदी और तत्कालीन क्षेत्रीय आयुर्वेद एवं यूनानी अधिकारी, बाराबंकी शशिधर शुक्ला शामिल हैं।
शासन के प्रवक्ता ने बताया कि आयुर्वेद निदेशालय में अफसरों और कर्मचारियों ने वर्ष 2010 में चिकित्साधिकारी (सामुदायिक स्वास्थ्य) को अनियमित तरीके से समयमान वेतनमान एवं वित्तीय स्तरोन्नयन का लाभ पहले की तारीखों से देकर सरकार को आर्थिक नुकसान पहुंचाया।
मुख्य सचिव जावेद उस्मानी के पास यह शिकायत पहुंचने के बाद उन्होंने प्रमुख सचिव वित्त आनंद मिश्रा, प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा जेपी शर्मा और सचिव वेतन आयोग अजय अग्रवाल की एक जांच समिति बना दी।जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में इन सभी को दोषी पाया है। समिति ने बाकायदा आयुर्वेद विभाग के दस्तावेजों की जांच की और उसके बाद अपनी प्रारम्भिक जांच रिपोर्ट मुख्य सचिव को दी।
ऐसे की गई गड़बड़ी
-आयुर्वेद विभाग में चिकित्साधिकारी (सामुदायिक स्वास्थ्य) को एसीपी के देने के लिए 4 मई, 2010 को वित्त विभाग ने एक आदेश किया था। इस आदेश के अनुसार, सभी चिकित्साधिकारियों को नियमित सेवा के दस वर्ष पूर्ण करने पर पहला प्रोन्नयन, इसके छह साल बाद यानी 16 साल पर दूसरा प्रोन्नयन और इसके 10 साल बाद यानी 26 साल पर तीसरा प्रोन्नयन दिया जाना चाहिए।
-वर्ष 2010 में जब पूर्व वित्त नियंत्रक पीसी चौधरी ने इन डाक्टरों का सुनिश्चित कैरियर प्रोन्नयन किया तो शासनादेश को समझने और गणितीय आंकलन में गड़बड़ी की वजह से जिन डाक्टरों को 26 साल पर तीसरा प्रोन्नयन दिया जाना चाहिए, उन्हें उन्होंने 22 वर्ष में ही प्रोन्नयन दे दिया
न केवल उन्होंने आंकलन में गड़बड़ी की, करीब 800 चिकित्साधिकारियों को अनियमित रूप से निदेशालय स्तर से वेतन बैण्ड 37,400-67,000, ग्रेड वेतन 8700 देने के आदेश भी गलत तरीके से दे दिए।
-दूसरी गड़बड़ी वरिष्ठताक्रम के अनुसार सिर्फ 20 फीसदी राजपत्रित सेवा वाले डाक्टरों को ही 14 वर्ष की सेवा पर द्वितीय प्रोन्नत वेतनमान के आदेश पर हुई।
13 मई, 1993 को एक आदेश हुआ था कि 14 वर्ष की सेवा पूर्ण करने के बाद सिर्फ 20 फीसदी डाक्टरों को वरिष्ठताक्रम के अनुसार 10,000-15,600 के वेतनमान वाले डाक्टरों को 12,000-16,500 का वेतनमान दे दिया जाए
साथ ही आठ वर्ष की सेवा पर सभी को प्रथम प्रोन्नत वेतनमान दिया जाए। शासन स्तर पर इसे जून 2010 में 8/14 वर्ष कर दिया गया।
इससे मुख्य चिकित्साधिकारियों ने बगैर शासन के अलग से निर्देश आए ही आठ साल पर प्रथम प्रोन्नत वेतनमान और 14 वर्ष पर दूसरा प्रोन्नत 20 फीसदी की जगह सभी डाक्टरों को देकर वेतनमान का भुगतान कर दिया गया।
शासनादेश में यह बदलाव उपसचिव स्तर पर किया गया था। इसे भी गड़बड़ी माना गया।
-पीसी चौधरी के बाद जब आयुर्वेद विभाग में जे के पांडेय की वित्त नियंत्रक के रूप में नियुक्ति हुई तो उन्होंने जांच में इस मामले को पकड़ा और इसकी शिकायत शासन को की।
19 साल पहले चर्चा में आया था आयुर्वेद निदेशालय
आयुर्वेद निदेशालय 19 साल पहले भी वर्ष 1994-95 में भी चर्चा में आया था। उस वक्त आयुर्वेद विभाग के तत्कालीन निदेशक डा. शिवराज सिंह के कार्यकाल में आयुर्वेद दवा का घोटाला हुआ।
करीब 40 करोड़ के इस घोटाले की जांच भी अब तक न्यायिक प्रक्रिया के तहत लंबित है। इसमें जिलों में फर्जी दवा आपूर्ति दिखाकर भुगतान करने का खेल किया गया था।
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