नई दिल्ली: 2जी मामले में जेपीसी के समक्ष पेश होने की यशवंत सिन्हा
की मांग को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने ठुकरा दिया है। प्रधानमंत्री ने
कहा है कि जेपीसी के पास सारे दस्तावेज हैं। हमारे पास छिपाने को कुछ नहीं
है।
संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के सदस्य सिन्हा ने दो दिन पहले प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था, जिसके जवाब में मनमोहन सिंह ने कहा कि समिति को आंतरिक रूप से तय करना चाहिए कि उसे पूछताछ के लिए किसे बुलाना है। प्रधानमंत्री ने सिन्हा को भेजे जवाबी पत्र में कहा कि क्या साक्ष्य पेश होने चाहिए और किसे जेपीसी के समक्ष पेश होने के लिए कहा जाना चाहिए, ये फैसले इस तरह के मामले होते हैं, जिन्हें जेपीसी और उसके अध्यक्ष द्वारा आंतरिक रूप से तय करने की आवश्यकता है।
सिंह ने कहा कि 2008 में हुए 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन के मामले में न तो खुद उनके पास और न ही सरकार के पास छिपाने के लिए कुछ है। उन्होंने बीजेपी नेता से कहा कि उन्हें (सिन्हा को) जानकारी है कि सभी उचित रिकॉर्ड और दस्तावेज जेपीसी के पास पहले से ही उपलब्ध हैं। प्रधानमंत्री को लिखे गए सिन्हा के पत्र से जेपीसी में आंतरिक कलह फैल गई। समिति के अध्यक्ष पीसी चाको ने मंगलवार को सिन्हा की मांग को यह कहते हुए नकार दिया कि यह एक 'राजनीतिक स्टंट' है।
चाको ने कहा कि प्रधानमंत्री को सिन्हा की ओर से पत्र लिखकर सीधे तौर पर यह कहना कि वह (मनमोहन सिंह) जेपीसी के समक्ष पेश हों, स्थापित नियमों के खिलाफ है। सिन्हा ने पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा द्वारा जेपीसी से की गई मांग को आगे बढ़ाते हुए कहा था कि प्रधानमंत्री को समिति के समक्ष पेश होना चाहिए। बीजेपी नेता की दलील है कि राजा ने सिंह के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए हैं।
सिन्हा की आलोचना करते हुए चाको ने कहा कि जेपीसी का कोई सदस्य प्रधानमंत्री को कैसे पत्र लिख सकता है? इस बारे में फैसला समिति को करना होता है। सिन्हा का पत्र केवल राजनीतिक स्टंट है और यह संसदीय प्रक्रिया के नियमों के खिलाफ है। कांग्रेस नेता चाको ने कहा कि सिन्हा के पत्र की कोई प्रासंगिकता नहीं है, क्योंकि किसी मंत्री को बुलाना हो या कोई अन्य फैसला, समिति ही तय करती है, न कि कोई व्यक्ति।
चाको ने कहा कि यदि समिति चाहे तो भी वह किसी मंत्री को बतौर गवाह तब तक नहीं बुला सकती, जब तक उसके बारे में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित न हो जाए। प्रस्ताव को फैसले के लिए लोकसभा अध्यक्ष को भेजा जाता है। प्रधानमंत्री के पेश होने की मांग को लेकर दबाव बनाने के लिए जेपीसी में सिन्हा और बीजेपी के पांच अन्य सदस्यों ने पिछले साल कुछ समय के लिए समिति की कार्यवाही का बहिष्कार किया था।
सिन्हा ने जेपीसी की बैठक दो महीने के लिए न बुलाए जाने को लेकर भी गंभीर आपत्ति व्यक्त की थी। अपनी मांग को उचित ठहराने के लिए सिन्हा ने दलील दी थी कि संसद की लोक लेखा समिति (पीएसी) जब 2जी घोटाले की जांच कर रही थी, तो प्रधानमंत्री ने उसके समक्ष पेश होने की पेशकश की थी और उन्हें जेपीसी के समक्ष पेश होने से भी हिचकिचाना नहीं चाहिए।
संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के सदस्य सिन्हा ने दो दिन पहले प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था, जिसके जवाब में मनमोहन सिंह ने कहा कि समिति को आंतरिक रूप से तय करना चाहिए कि उसे पूछताछ के लिए किसे बुलाना है। प्रधानमंत्री ने सिन्हा को भेजे जवाबी पत्र में कहा कि क्या साक्ष्य पेश होने चाहिए और किसे जेपीसी के समक्ष पेश होने के लिए कहा जाना चाहिए, ये फैसले इस तरह के मामले होते हैं, जिन्हें जेपीसी और उसके अध्यक्ष द्वारा आंतरिक रूप से तय करने की आवश्यकता है।
सिंह ने कहा कि 2008 में हुए 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन के मामले में न तो खुद उनके पास और न ही सरकार के पास छिपाने के लिए कुछ है। उन्होंने बीजेपी नेता से कहा कि उन्हें (सिन्हा को) जानकारी है कि सभी उचित रिकॉर्ड और दस्तावेज जेपीसी के पास पहले से ही उपलब्ध हैं। प्रधानमंत्री को लिखे गए सिन्हा के पत्र से जेपीसी में आंतरिक कलह फैल गई। समिति के अध्यक्ष पीसी चाको ने मंगलवार को सिन्हा की मांग को यह कहते हुए नकार दिया कि यह एक 'राजनीतिक स्टंट' है।
चाको ने कहा कि प्रधानमंत्री को सिन्हा की ओर से पत्र लिखकर सीधे तौर पर यह कहना कि वह (मनमोहन सिंह) जेपीसी के समक्ष पेश हों, स्थापित नियमों के खिलाफ है। सिन्हा ने पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा द्वारा जेपीसी से की गई मांग को आगे बढ़ाते हुए कहा था कि प्रधानमंत्री को समिति के समक्ष पेश होना चाहिए। बीजेपी नेता की दलील है कि राजा ने सिंह के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए हैं।
सिन्हा की आलोचना करते हुए चाको ने कहा कि जेपीसी का कोई सदस्य प्रधानमंत्री को कैसे पत्र लिख सकता है? इस बारे में फैसला समिति को करना होता है। सिन्हा का पत्र केवल राजनीतिक स्टंट है और यह संसदीय प्रक्रिया के नियमों के खिलाफ है। कांग्रेस नेता चाको ने कहा कि सिन्हा के पत्र की कोई प्रासंगिकता नहीं है, क्योंकि किसी मंत्री को बुलाना हो या कोई अन्य फैसला, समिति ही तय करती है, न कि कोई व्यक्ति।
चाको ने कहा कि यदि समिति चाहे तो भी वह किसी मंत्री को बतौर गवाह तब तक नहीं बुला सकती, जब तक उसके बारे में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित न हो जाए। प्रस्ताव को फैसले के लिए लोकसभा अध्यक्ष को भेजा जाता है। प्रधानमंत्री के पेश होने की मांग को लेकर दबाव बनाने के लिए जेपीसी में सिन्हा और बीजेपी के पांच अन्य सदस्यों ने पिछले साल कुछ समय के लिए समिति की कार्यवाही का बहिष्कार किया था।
सिन्हा ने जेपीसी की बैठक दो महीने के लिए न बुलाए जाने को लेकर भी गंभीर आपत्ति व्यक्त की थी। अपनी मांग को उचित ठहराने के लिए सिन्हा ने दलील दी थी कि संसद की लोक लेखा समिति (पीएसी) जब 2जी घोटाले की जांच कर रही थी, तो प्रधानमंत्री ने उसके समक्ष पेश होने की पेशकश की थी और उन्हें जेपीसी के समक्ष पेश होने से भी हिचकिचाना नहीं चाहिए।
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