मुंबई में बहुत दिनों से अटकलें थीं कि मुकेश अंबानी अपनी दूरसंचार कंपनी की तरफ से 4जी की सेवाएं लॉन्च करने के लिए छोटे भाई की कंपनी रिलायंस कम्युनिकेशन के देश भर में फैले फाइबर ऑप्टिक के जाल का इस्तेमाल करेंगे. दोनों ने इस पर हुए एक समझौते की पुष्टि कर दी.
इस समझौते के अंतर्गत मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस जिओ इन्फोकॉम अनिल अंबानी की कंपनी द्वारा देश भर में बिछाए गए एक लाख बीस हजार किलोमीटर ऑप्टिक फाइबर का इस्तेमाल करेगी.
मिलन के संकेत
इस समझौते के अनुसार बड़े भाई छोटे भाई को 1,200 करोड़ रूपए देंगे. छोटे भाई को इस राशि की काफी ज़रूरत है क्योंकि उनकी कंपनी 37 हजार करोड़ के क़र्ज़ के बोझ में डूबी हुई है.इस समझौते का आम तौर से स्वागत किया गया है. मुंबई के शेयर बाजार में उछाल देखने को मिला और रिलायंस के शेयर में 11 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है.
आर्थिक जगत में इस समझौते को दोनों भाइयों में दोबारा मिलन की तरफ ये पहला क़दम माना जा रहा है. छोटा ही सही लेकिन ये एक महत्वपूर्ण क़दम है.
इस समझौते से ये अनुमान लगाया जा रहा है कि दोनों भाई पुराने गिले शिकवे भूल चुके हैं. हाल में दोनों कई समारोह में भी एक साथ देखे गए.
ये भी समझा जा रहा है कि दोनों भाई देश के आर्थिक माहौल को देखते हुए इस बात को मानते हैं कि एकजुट हो कर काम करने में अधिक फायदा है.
'एक नहीं होंगी कंपनियां'
साल 2005 में सात महीने तक चलने वाले आपसी झगड़े के बाद दोनों भाई अलग हो गए थे. और रिलायंस ग्रुप की कंपनियों का विभाजन कर दिया गया था. उस समय दोनों सार्वजिनक रूप से एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी किया करते थे.
अनिल अंबानी बार बार मीडिया के सामने आकर अपने बड़े भाई पर प्रहार करते थे. मुकेश अंबानी अधिकतर खामोश रहना ही पसंद करते थे. दोनों की माँ कोकिला बेन ने बीच बचाओ करने की कोशिश की थी लेकिन इस में उन्हें सफलता नहीं मिली थी.
लेकिन अब व्यावसायिक कारणों से ऐसा लगता है कि दोनों एक दूसरे से गले मिलने को तैयार हैं.
रिलायंस ग्रुप की स्थापना 53 साल पहले मुकेश और अनिल अंबानी के पिता धीरूभाई अंबानी ने की थी. कहा जाता है कि जब वो गुजरात में एक पेट्रोल पंप के छोटे से कर्मचारी थे तो बड़े उद्योग स्थापित करने के सपने देखा करते थे.
उनका सपना न केवल उनके जिंदा रहते ही सच हुआ बल्कि 2002 में उनकी मृत्यु के समय रिलायंस ग्रुप भारत के सबसे बड़े व्यापारिक ग्रुपों में शामिल किया जाने लगा था.
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