newspaper

Founder Editor(Print): late Shyam Rai Bhatnagar (journalist & freedom fighter) International Editor : M. Victoria Editor : Ashok Bhatnagar *
A newspaper with bold, open and democratic ideas {Established : 2004}

25 अग॰ 2013

गिरा कौन रुपया या हम



राकेश माथुर
मीडिया बड़े जोर शोर से कह रहा है कि रुपया तो 70 छूकर भी 60 या 50 पर लौट आएगा लेकिन सरकार जिम्मेदारी समझे यह असंभव ही है। किंतु समझानी ही होगी। चाहे ऐसे गैर जिम्मेदार मंत्रियों को चुन चुन कर चुनाव में हराना पड़े। नए चुने कम धोखा देंगे-ऐसा जरूरी नहीं है। किंतु धोखा देने के लिए हम किसी को 10 साल क्यों देंगे तब तो न रुपया कमजोर होगा न सरकार बल्कि हम ही होंगे, कमजोर, पुरजोर कमजोर।
भारत में रुपया डालर के मुकाबले गिर रहा है। भारत में लोग सरकार को गालियां दे रहे हैं। खुद अमेरिका में क्या हालत है किसी ने तुलना की है नहीं क्यो क्योंकि हमारे यहां एक मानसिकता है..प्याज महंगी हो रही है मनमोहन सिंह इस्तीफा दें, कोयला मंत्रालय से फाइलें गायब हो रही हैं मनमोहन सिंह इस्तीफा दें। दिल्ली में किसी ने किसी से बलात्कार किया है प्रधानमंत्री या शीला दीक्षित इस्तीफा दें। गुजरात में कुछ होता है उसकी खबर या तो बाहर ही नहीं आती या आती भी है तो किसी की हिम्मत नहीं जो मोदी से उसी तर्ज में इस्फीफा मांग लें। कहीं ये पेड न्यज या पेड आर्टिकल का मामला तो नहीं हैं। लेकिन जनता समझदार है यह कर्नाटक के चुनाव से साबित कर दिया। लोकसभा उपचुनाव की दो सीटें कांग्रेस की झोली में डालकर।
डालर के मुकाबले रुपए के गिरने से अर्थशास्त्री क्या सोचते हैं यह अलग मुद्दा है। अमीरों के दिक्कत होती है क्योंक वे अपने बच्चों को विदेश पढ़ने भेजते हैं उनका खर्च बढ़ जाता है, जो लोग विदेश घूमने जाते हैं ऐश करने जाते हैं उनका खर्च बढ़ जाता है, लाखों करोड़ों की आलीशान गाड़ियों में घूमने वालों को ज्यादा पैसे पेट्रोल पर खर्च करने पड़ते हैं, सोचने की बात है एक करोड़ रुपए की हमर में या 80 लाख की कार में घूमने वाले या हेलिकाप्टरों में चलने वाले पेट्रोल या डीजल के बढ़े 80 पैसे या एक रुपए देने में ऐसे चिल्लाते हैं मानो सरकार ने उनसे उनकी जिंदगीभर की कमाई छीन ली हो। एसी कमरों में बैठने वाले और कभी बाजार से कुछ न खरीदने वाले बयान देते हैं शहरों में अमीर कौन गावों में गरीब कौन। 
प्याज महंगी क्यों हो रही है.टमाटर सस्ता होने पर कौन फेंक देता है या आलू सस्ते होंते हैं तो ट्रैक्टरों से कुचलता कौन है..आखिर कौन है जो हमारे देश में महंगाई को रुपने नहीं देता।
क्या आप जानते हैं कि डालर के गुण गाने वाले और डालर के बहाने अपने देश को गाली देने वाले नहीं जानते अमेरिका की हालत क्या है। वहां एक ट्रेन दुर्घटना होती है ट्रेन कंपनी दीवालिया होने की अर्जी दे देती है ताकि लोगों को मुआवजा न देना पड़े। कार बनाने वाला सबसे बड़ा शहर दीवालिया होने की अर्जी कोर्ट में लगाता है। क्या आप भारत की किसी कंपनी या शहर का नाम बता सकते हैं जिसने दीवाला निकलने की अर्जी दी हो। अमेरिका में किसी ने राष्ट्रपति ओबामा का इस्तीफा नहीं मांगा। वहां के आर्थिक संकट की जानकारी है.संसद को प्रस्ताव पारित कर दस साल के लिए कटौती करनी पड़ी। कितने हजार लोगों की नौकरियां गईं, मनमोहन सरकार से इस्तीफा मांगने वालों और अमेरिका के गुणगान करने वालों से पूछें। कितने लोगों को जबरन अवैतनिक अवकाश लेने पड़ रहे हैं जरा पूछिए भावी संभावित भावी प्रधानमंत्री से। वे अमेरिकी पद्धति भारत में लागू करना चाहते हैं।
भारत में अमेरिका की तरह प्रधानमंत्री पद के लिए खुली बहस के जरिए चुनाव करवाने की वकालत भाजपा के बड़े नेता ने की है। वे भूल गए कि अमेरिका में प्रधानमंत्री का पद नहीं है और सीधे चुने हुए राष्ट्रपति की हर नियुक्ति को सीनेट की मंजूरी लेनी होती है। भाजपा के वे नेता राज्यसभा में ही पार्टी के नेता हैं लेकिन क्या वे बता सकते हैं कि राज्यसभा ऐसी नियुक्तियों को मंजूरी देती है क्या। मनोमहन सिंह राज्यसभा के सदस्य हैं उन्हें कहते हैं कि वे निर्वाचित नहीं है।
अरे किसी एक पार्टी का समर्थन करो कोई नहीं रोकता लेकिन सफेद झूठ तो मत बोलो। ये जनता है सब जानती है। तथ्यों को न छुपाओ। यूरोप के कितने देशों को वित्तीय संकट से निकलने के लिए बेलआउट लेने पड़े। क्या क्या गिरवी रखना पड़ा ये भी तो बताओ। गरीब रिक्शावाले को डालर से क्या मिलेगा डालर एक रुपए का रहे या सौ का उसकी सेहत पर क्या फर्क पड़ता है। पटरियों के किनारे रहने वालों को डालर का तो नाम भी नहीं मालूम। भारत से समान निर्यात करने वालों को तो ज्यादा रुपए मिलेंगे। एक जमाना था एक डालर के बदले मुझे 16 रुपए मिले थे, आज मेरा बेटा खुश है उसे हर डालर के बदले 60 से 63 रुपए मिलते हैं। मंहगाई की बात करने वाले बताएं 1947 में वेतन कितना था, कार कितने लोगों के पास थी, उसकी तुलना में आज वेतन कितना है, कार किसके पास नहीं है। तब का एक रुपया आज सुनार की दुकान पर मिलता है।
भारत को हिंदुस्तान बताने वालों यह भी बताओ हमारे संविधान में खुद हमने देश का नाम क्या रखा है। मेरा दावा है देश के 98 प्रतिशत लोगों को अपने देश का नाम नहीं मालूम कुछ मेरे जैसे हो सकते हैं लेकिन दो प्रतिशत से ज्यादा नहीं है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें