राकेश माथुर
आजकल एक राजनीतिक दल सभी हिंदुओं को एकजुट होने और दूसरे धर्म के सभी लोगों को देशद्रोही बताने में जी-जान से जुटा है। एक राजनीतिक दल के चुनावी खिवैया दंगों के समय एक राज्य के लोगों के पिता समान नेता थे। दंगे हर समय काल में होते रहे हैं। जिनके काल में दंगे होते हैं वे कभी मान लेते हैं कि वे दंगे रोकने में नाकाम रहे इसलिए नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए या तो इस्तीफा दे देते हैं या माफी मांग लेते हैं। लेकिन ये पिता समान व्यक्ति इस्तीफा देना तो दूर माफी तक मांगने को तैयार नहीं। उनसे चर्चा भी करते हैं तो सवाल पूछने वाले को वे दूसरे राजनीतिक दल का एजेंट बता देते हैं। वहां एक समुदाय के 69 लोगों की हत्या हो जाती है, लोग मरते हैं लेकिन वे मानने को तैयार नहीं कि उन्हें किसी ने मारा था। एक वृद्धा जिसके पति के हाथ पैर काट कर जिंदा जला दिया गया था वह 12 साल से अपने पति के हत्यारे को सजा दिलवाने की कोशिश कर रही है, किसी राज्य की सरकार या सरकार के मुखिया का इस न्याय पाने की मुहिम में अड़ंगा लगाकर रहा है। असल में उन्हें खुद आगे आकर हत्यारे को पकड़वाने कर सजा दिलवाने की कोशिश करनी चाहिए थी। अब वह प्रांतीय मुखिया देश का मुखिया बनने की कोशश में है। उन्होंने नारा दिया है कि देश को एक राजनीतिक दलमुक्त बनाना है। पता नहीं क्यों।
आखिर जिस राजनीतिक दल को ये खत्म करना चाहते हैं उसके नेतृत्व में देश ने आजादी की लड़ाई लड़ी। देश आजाद हुआ। उसके कई नेता आतंकियों के हाथों मारे गए। उस राजनीतिक दल ने विश्व में किसी भी स्वतंत्र देश की पहली महिला प्रधानमंत्री दी, पड़ोसी देश के आक्रामक हमलों को चकनाचूर किया। विश्व महाशक्ति की धमकियों के बावजूद पड़ोसी दुष्ट राष्ट्र के दो टुकड़े करवाए। विश्व में 100 से ज्यादा देशों का नेतृत्व संभाल कर दो महाशक्तियों पर काबू रखा। अंत में उन्होंने उनपर भरोसा कर लिया जिन पर भरोसा न करने को कहा गया था। फलस्वरूप वे देश की पहली महिला प्रधानमंत्री हुई जिन पर उन्हीं के घर में दो सुरक्षा प्रहरियों ने 19 गोलियां शरीर में उतार दीं। उसी राजनीतिक दल के एक और प्रधानमंत्री हुए, जो कभी पायलट थे। उन्होंने देश को आधुनिक बनाने की कोशिश की, कम्प्यूटर लाए तो इस पार्टी के नेताओं ने खुलकर विरोध किया जो आज उसी कम्प्यूटर और नेटवर्क का इस्तमाल कर उनकी पार्टी का समूल नाश करने का ऐलान कर रखा है। उन्होंने देश को कम्प्यूटर, मोबाइल फोन दिया जो देश के लगभग हर शिक्षत के हाथ में हैं, कई लोग तो 24 घंटे इनसे चिपके रहते हैं। अयोध्या के राममंदिर का ताला भी उन्होंने खुलवाया जिसके दम पर दूसरी पार्टी के नेता रथ पर सवार होकर देशभर में घूमे, एक धक्का और दिया जिससे देश के कई हिस्सों में हिंसा फैली। वह नेता एक फर्जी मामले में चले आंदोलन के कारण सत्ता से देश की भोली जनता द्वारा बाहर कर दिया गया। विपक्ष के नेता के तौर पर दक्षिण भारत में चुनावी दौरे पर था जब आतंकी विस्फोट में उसे मार दिया गया। देश का यह एकमात्र राजनीतिक दल है जिसके नेता आतंकी हमलों में मारे जा रहे हैं। एक राज्य में कुछ समय पहले ही उस राजनीतिक दल के नेताओं को घेर कर मार दिया गया। अब पूरे राजनीतिक दल की हत्या की साजिश है। मैं किसी राजनीतिक दल के पक्ष में नहीं हूं लेकिन लोकतंत्र में सत्ता में आने के लिए यह कहना कि देश को फलाना राजनीतिक दल से मुक्त करवाना है, मेरे हिसाब से अलोकतांत्रिक है। तानाशाही है। चुनाव में हराना अलग बात है.यह जनता पर निर्भर है कि वह किसी राजनीतिक दल को एक भी संसदीय सीट न दे या किसी को सारी सीटें दे दे। जनता को यह हक है। लेकिन कभी 2 सीटों से सत्ता तक पहुंची पार्टी जनता से अपील करे कि फलां पार्टी से देश को मुक्त करना है तो कई सवाल और संदेह मन में उठते हैं।
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