मार्स वन की मंगल पर बस्ती बसाने की परिकल्पना..
राकेश माथुर
1998-99 के बाद मंगल से मेरे दोस्त का एक और संदेश आया है। पिछला संदेश तब छपा था मैंने उसने बताया था कि पृथ्वी से आया यान, उस तब उसने छकड़ा कहा था, सुनसान रेगिस्तानी इलाके में उतरा था ठीक वैसे ही जैसे करीब 10000 साल पहले उनके यहां से आया पहला यान पृथ्वी पर तो उतरा था लेकिन अंटार्कटिका में उतरा था। तब वहां आदमजात पहुंची नहीं थी। मंगल के वैज्ञानिकों ने तब मान लिया था कि पृथ्वी पर पानी और बर्फ तो है, लेकिन मनुष्य जैसे किसी प्राणी के रहने लायक नहीं है। उसे पेंग्विन मिले, कुछ बर्फानी भालू। बाद में एक-दो यान कालाहारी और नवादा के रेगिस्तानों में उतर गए। वहां उन्हें कुछ भी नहीं मिला।
लगभग ऐसे ही हमारे यान भी लालग्रह पर उतरे। लगा वहां दूर दूर तक कोई आबादी नहीं है। लेकिन वह असलियत से दूर है। वहां बाकायदा आबादी है। मेरे दोस्त ने संदेश में बताया है कि उनका ग्रह भी पृथ्वी की तरह कई देशों में बंटा है। ज्यादातर देश शांतिप्रिय हैं, लेकिन दुष्ट देश भी हैं। धर्म जैसी चीज वहां भी है लेकिन प्राकृतिक तत्वों की पूजा होती है। सूर्य के साथ नीले गृह (पृथ्वी) की भी पूजा होती है। उनके यहां ऐसा कोई पंडित नहीं जो बताए कि किसी को नीलदोष (पृथ्वी पर मंगलदोष की तरह) लगा है।
अब वे कुछ परेशान से हैं। घबराए नहीं हैं क्योंकि उन्हें पता है कि पृथ्वीवासियों को शारीरिक रूप से उन तक पहुंचने में दशकों लगेगे, सदी भी लग सकती है। मानसिक रूप से कुछ पृथ्वीवासी मुझे गर्व है वे भारतीय भूमि के ही थे। कुछ पुराने साधु संतों ने सदियो पहले ब्रह्मांड भ्रमण की चर्चा की है। मंगलवासियों से मानसिक संपर्क भी किया जिसे टेलिपैथी कहते हैं।
अब पृथ्वी पर एक निजी कंपनी मार्स वन के नाम से लोगों को लालग्रह तक ले जाने का इंतजाम कर रहा है जो यह भी कह रही है कि लोगों को वहीं छोड़ कर आ जाएंगे क्योंकि लाने का इंतजाम नहीं है।
दोस्त ने मुझे भेजे संदेश में कहा है कि पृथ्वीवासियों को पृथ्वी पर लौटाने का इंतजाम वे कर सकते हैं लेकिन सदियों पहले किसी पृथ्वीवासी ने लालग्रह वासियों से किसी लालच के कारण धोखा दिया था इसलिए अब वे भरोसा करने की मानसिक स्थिति में नहीं हैं। हिमालय की कंदराओं से उन तक फिर संदेश पहुंचा है कि गोरे पृथ्वीवासियों पर भरोसा न किया जाए। गोरे ध्रुवीय भालुओं के अलावा केवल दोपाए ही गोरे हैं। ये गोरे दोपाए अमेरिका, रूस, ब्रिटेन या यूरोप के हो सकते हैं। नीदरलैंड्स के वैज्ञानिक भी गोरे हैं।
मैंने अपने दोस्त को भरोसा दिलाया है कि पृथ्वी के वैज्ञानिक मुद्रा की कमी के कारण मेरे जीवनकाल में तो लालग्रह तक यान से पहुंच पाने में सफल नहीं हो सकेंगे। अभी हमारे वैज्ञानिकों ने किसी दूसरे ग्रह को इतनी बारीकी से तलाशने की काबिलियत भी हासिल नहीं की। इसलिए वह दूसरे ग्रह पर रहने वाले प्राणियों को तलाश कर उनसे बात कर सके।
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