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2 अग॰ 2019

 व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करने संबंधी यूएपीए संशोधन विधेयक को संसद ने दी मंज़ूरी

यूएपीए संशोधन विधेयक को राज्यसभा ने 42 के मुकाबले 147 मतों से मंज़ूरी दी. कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने कहा कि इस संशोधन विधेयक के ज़रिये एनआईए को और अधिक शक्तिशाली बनाने की बात कही गई है, लेकिन सच यह है कि इसके ज़रिये अधिक शक्तियां केंद्र सरकार को मिल रही हैं.नई दिल्ली: संसद ने  किसी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करने तथा आतंकवाद की जांच के मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को और अधिकार देने वाले विधेयक को मंजूरी दे दी.सरकार ने इसके प्रावधानों के दुरुपयोग की विपक्ष की आशंकाओं को निराधार करार देते हुए कहा कि इसके प्रावधान जांच एजेंसियों को आतंकवाद से चार कदम आगे रखने के लिए हैं.
गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) संशोधन विधेयक (यूएपीए) को 42 के मुकाबले 147 मतों से मंजूरी दे दी.
(फोटो: पीटीआई) सदन ने विपक्ष द्वारा इसे प्रवर समिति में भेजने के प्रस्ताव को 85 के मुकाबले 104 मतों से खारिज कर दिया. लोकसभा इसे पिछले सप्ताह ही मंजूरी दे चुकी है.
विधेयक में किसी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करने के प्रावधान के दुरुपयोग होने की आशंका को निर्मूल ठहराते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने विधेयक पर हुई चर्चा के जवाब में कहा कि आतंकवाद से मुकाबले के लिए ऐसा करना जरूरी है.
उन्होंने कहा कि कानून में यदि इस तरह का प्रावधान 2009 में रहा होता तो कोलकाता पुलिस द्वारा पकड़ा गया कुख्यात आतंकवाद यासीन भटकल कभी नहीं छूट पाता और आज एनआईए की गिरफ्त में होता.
शाह ने कहा कि हमें इस बात को समझना होगा कि व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करने का क्या मतलब है? उन्होंने कहा कि ये बड़े जटिल तरह के मामले होते हैं जिनमें साक्ष्य मिलने की संभावना कम होती है. ऐसे मामले अंतरराज्यीय और अंतरराष्ट्रीय किस्म के होते हैं.
उन्होंने कहा कि कुछ विपक्षी सदस्यों ने तर्क दिया कि संस्था व्यक्ति से बनती है. शाह ने कहा कि उनका भी यही तर्क है कि संस्था व्यक्ति से बनती है, संगठन के संविधान से नहीं.
गृह मंत्री ने कहा कि आतंकवाद के मामले में प्राय: यह देखने में आया है कि एक संगठन पर प्रतिबंध लगाने पर व्यक्ति दूसरा संगठन खोल लेते हैं. उन्होंने कहा कि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आतंकवाद संगठन नहीं, व्यक्ति करता है.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने शाह से स्पष्टीकरण पूछते हुए कहा कि इस विधेयक में किसी व्यक्ति को किस स्थिति में आतंकवादी घोषित किया जाएगा, इसे लेकर कोई स्पष्टता नहीं है.
इस पर गृह मंत्री ने कहा कि विधेयक में कुछ अस्पष्टता अवश्य है लेकिन यह स्थिति की जटिलता के कारण है. उन्होंने कहा कि मान लीजिए कि हम यह कहें कि पूछताछ के बाद किसी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करेंगे तो इस शर्त पर हम हाफिज सईद या दाऊद इब्राहिम को कैसे आतंकवादी घोषित कर पाएंगे, क्योंकि उससे पूछताछ करना अभी संभव नहीं है.
उन्होंने कहा कि परिस्थितिजन्य आधार पर यह तय किया जाएगा. उन्होंने कहा कि व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करने के बाद भी कई स्तर पर समीक्षा होगी. उन्होंने कहा कि चार स्तर पर इसकी समीक्षा होगी. इसलिए इसे लेकर शंका नहीं की जानी चाहिए.
बसपा के वरिष्ठ नेता सतीश चंद्र मिश्र ने कहा कि आतंकवाद से निपटने के लिए सरकार के हाथ मजबूत करने के उद्देश्य से उनकी पार्टी इस विधेयक का समर्थन करती है तथा हमें नहीं लगता कि संशोधनों में कोई खामी है.’
वर्तमान सत्र में यह तीसरा मौका है जब राज्यसभा में सरकार ने समुचित संख्या बल नहीं होने के बावजूद विवादास्पद विधेयक को पारित कराया है. इससे पहले आरटीआई कानून में संशोधन और तीन तलाक पर रोक लगाने से संबंधित विधेयकों को राज्यसभा में मतदान के दौरान सरकार को सफलता मिली थी.
इस विधेयक में एनआईए द्वारा किसी मामले की जांच किए जाने पर एजेंसी के महानिदेशक को संपत्ति की कुर्की के लिए मंजूरी देने का अधिकार दिया गया है.
इसमें कहा गया है कि केंद्र सरकार को प्रस्तावित चौथी अनुसूची से किसी आतंकवादी विशेष का नाम जोड़ने या हटाने के लिए और उससे संबंधित अन्य परिणामिक संशोधनों के लिए सशक्त बनाने हेतु अधिनियम की धारा 35 का संशोधन करना है.

यूएपीए में संशोधन को कठोर बताते हुए विपक्ष ने की थी प्रवर समिति में भेजे जाने की मांग

गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) विधेयक में किए जा रहे संशोधन को कठोर बताते हुए राज्यसभा में शुक्रवार को विपक्ष ने इस विधेयक को प्रवर समिति में भेजे जाने की मांग की थी और कहा कि किसी भी ऐसे व्यक्ति के खिलाफ इस नए कानून का दुरुपयोग किया जा सकता है जो सरकार का विरोध करेगा. हालांकि उनकी इस मांग को खारिज कर दिया गया.
गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) विधेयक, 1967 (यूएपीए) का एक और संशोधन करने के लिए लाए गए ‘गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) विधेयक, 2019’ पर उच्च सदन में चर्चा को आगे बढ़ाते हुए ज्यादातर विपक्षी सदस्यों ने कहा कि वे आतंकवाद का विरोध करते हैं लेकिन इस संशोधन विधेयक को और अधिक विचार विमर्श के लिए प्रवर समिति के पास भेजा जाना चाहिए क्योंकि उन्हें आशंका है कि कहीं इस कानून का दुरुपयोग न किया जाए.
चर्चा को आगे बढ़ाते हुए माकपा के इलामारम करीम ने कहा, ‘सरकारी आतंकवाद थोपा जा रहा है और असहमति जताने वालों को आतंकवादी घोषित किया जा सकता है. इससे बड़े पैमाने पर उत्पीड़न और अन्याय होगा.’
उन्होंने कहा कि इस संशोधन से राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को किसी भी राज्य सरकार की अनुमति लिए बिना या उसे सूचित किए बिना उस राज्य में जाने तथा किसी व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करने का खुला लाइसेंस मिल जााएगा.
इलामारम ने भाजपा सरकार को सनातन संस्था जैसे कुछ कट्टरपंथी संगठनों के प्रति नर्म रवैया अपनाने का आरोप लगाया.
उन्होंने कहा, ‘आप इसे आतंकवादी संगठन के तौर पर सूचीबद्ध क्यों नहीं करते?’ उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा के ही एक मंत्री ने कुछ साल पहले आतंकवादी मसूद अजहर को देश के बाहर पहुंचाया था.
पूर्ववर्ती पोटा और टाडा कानूनों का उल्लेख करते हुए इलामारम ने कहा कि इनके तहत बड़ी संख्या में अल्पसंख्यकों को पकड़ा गया लेकिन दोषसिद्धि की दर बहुत ही कम रही.
इलामारम उच्च सदन में वाम दलों के एकमात्र सदस्य हैं.
उन्होंने कहा, ‘हम आपके बहुमत, धन बल और ताकत से नहीं डरते.’ उन्होंने विधेयक को प्रवर समिति में भेजे जाने की मांग करते हुए कहा कि वह इस विधेयक का विरोध करते रहेंगे.
कांग्रेस के वरिष्ठ सदस्य पी. चिदंबरम ने चर्चा में हिस्सा लेते हुए कहा, ‘गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) संशोधन विधेयक (यूएपीए) में 1969, 1972, 1986, 2004, 2008 और 2013 में संशोधन किए गए. 2008 और 2013 में बड़े संशोधन हुए. कांग्रेस और संप्रग ने न केवल आतंकवाद रोधी कानून बनाया बल्कि इसमें समय समय पर संशोधन भी किया.’
उन्होंने कहा, ‘हमने आतंकवाद के खिलाफ कड़े कदम उठाए.’
पूर्व गृह मंत्री ने कहा, ‘संशोधन के पहले भी, व्यक्ति विशेष मूल कानून के तहत आते हैं और उनके खिलाफ कार्रवाई होती है. आतंकवादियों और आतंकी गुटों के खिलाफ कोई भेदभाव नहीं किया जाता. यह व्यवस्था पहले भी रही है. फिर सरकार यह संशोधन विधेयक क्यों ले कर आई है?’
चिदंबरम ने कहा कि इस संशोधन विधेयक के जरिये एनआईए को और अधिक शक्तिशाली बनाने की बात कही गई है. सच तो यह है कि इसके जरिये अधिक शक्तियां केंद्र सरकार को मिल रही हैं. उन्होंने कहा, ‘हम आतंकवाद पर कार्रवाई के विरोधी नहीं हैं लेकिन हम केंद्र को और अधिक शक्तियां मिलने का विरोध कर रहे हैं.’
संशोधन विधेयक पर कानून विशेषज्ञों की राय लेने और इसे प्रवर समिति के पास भेजे जाने की मांग करते हुए चिदंबरम ने कहा, ‘यह विधि सम्मत नहीं है और सरकार यह मान नहीं रही है कि यह असंवैधानिक है.’
मनोनीत सदस्य और वरिष्ठ अधिवक्ता केटीएस तुलसी ने संशोधन का विरोध करते हुए कहा कि शायद अदालतें इसे रद्द कर दें और असंवैधानिक घोषित कर दें.
उन्होंने कहा कि राज्य सरकारों की सहमति के बिना पुलिस उनके यहां जा कर कार्रवाई करेगी. यह अत्यंत गंभीर विषय है. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करने के लिए ठोस सबूत होने चाहिए.
चर्चा में हिस्सा लेते हुए राजद के मनोज कुमार झा ने कहा कि किसी को भी आतंकवादी कह देना बहुत आसान होता है लेकिन देखना चाहिए कि इसके बाद उस व्यक्ति की जिंदगी और उसका परिवार किस तरह के हालात का सामना करता है.
संशोधन विधेयक के प्रावधानों को कठोर बताते हुए झा ने कहा, ‘यह विधेयक उस विचारधारा का संकेत करता है कि अगर मैं सरकार की आलोचना करता हूं तो मैं राष्ट्रविरोधी कहलाऊंगा.’
उन्होंने बताया कि 1947 में प्रख्यात समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया को तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने हिरासत में ले लिया था और पंडित जवाहर लाल नेहरू के आग्रह के बावजूद उन्हें छोड़ने से यह कहते हुए मना कर दिया था कि कानून अपना काम करेगा.
झा ने कहा कि अगर आतंकवादी होने के आरोप में पकड़ा गया व्यक्ति 15-16 साल बाद बेकसूर साबित होता है और रिहा होता है तब सवाल यह उठता है कि उसके 15-16 साल उसे कैसे लौटाए जाएंगे?’
उन्होंने सरकार से सवाल किया, ‘आपके पास पूरे अधिकार हैं, हर ओर आपकी नजर है फिर आपको अतिरिक्त अधिकार क्यों चाहिए.’
आम आदमी पार्टी के संजय सिंह ने कहा कि इस तरह के कानूनों के दुरुपयोग का लंबा इतिहास रहा है. असम में 12 साल के बच्चे पर, गुजरात में 12 साल के बच्चे पर और गढ़चिरौली में 14 साल के बच्चे पर टाडा लगाया गया.’
उन्होंने कहा, ‘संशोधित कानून के अनुसार इंस्पेक्टर स्तर का अफसर किसी भी राज्य में जा कर किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है. यह संघीय ढांचे की भावना के खिलाफ है.’
द्रमुक सदस्य पी. विल्सन ने विधेयक को राज्यसभा की प्रवर समिति या स्थायी संसदीय समिति के पास भेजे जाने की मांग की ताकि इसके प्रावधानों पर गहन विचार विमर्श किया जा सके.
उन्होंने कहा जब किसी संगठन को आतंकवादी संगठन घोषित किया जाता है तो जांच के बाद, उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ उस पर निर्णय करती है. लेकिन किसी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित किए जाने पर उसके लिए निर्णय की क्या व्यवस्था होगी?
विल्सन ने कहा, ‘क्या केंद्र सरकार का अधिकारी किसी भी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित कर सकता है? विधेयक में यह नहीं कहा गया है कि केंद्र सरकार का वह अधिकारी कौन होगा जो किसी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करेगा. उसे इतने अधिकार क्यों दिए जा रहे हैं? अधिकारी कोई न्यायिक अधिकारी तो नहीं होगा.’

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