पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पूरणो संगमा ने कहा है कि वे प्रणब मुखर्जी की उम्मीदवारी को कोर्ट में चुनौती देंगे। लाभ का पद मामले में भले ही कुछ भी न निकले क्योंकि कोई भी व्यक्ति अपने ही हस्ताक्षर जाली नहीं कर सकता। वह यह तो कह सकता है किसी दूसरे ने उसके जाली हस्ताक्षर किए लेकिन कोई यह नहीं कह सकता कि किसी ने अपने ही जाली हस्ताक्षर किए। अब तो रिटर्निंग आफिसर ने भी प्रणब मुखर्जी के नामांकन पत्र को वैध ठहरा दिया है।
भाजपा भी संगमा का साथ दे रही है। उसने भी कहा है कि वह 19 जुलाई के राष्ट्रपति चुनाव को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी। इससे ऐसा लगता है कि राष्ट्रपति चुनाव में 2012 में 1969 को दोहराया जा सकता है।
1969 में इंदिरा गांधी के समर्थन से निर्दलीय उम्मीदवार वीवी गिरी राष्ट्रपति चुनाव जीत गए थे। कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवार नीलम संजीवा रेड्डी को हार का सामना करना पड़ा था (कई साल बाद संजीवा रेड्डी निर्विरोध राष्ट्रपति भी चुने गए)।
गिरि के चुनाव जीतने के बाद शिव कृपाल सिंह सहित चार याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई थीं। इनमें चुनाव को रद्द करने की मांग थी। दलील यह थी कि चुनाव में मतदाताओं को ललचाने के लिए अनैतिक व्यवहार हुआ है।भ्रष्ट तरीका अपनाया गया है।
शीर्षस्थ कोर्ट ने मामले की छानबीन की। राष्ट्रपति चुनाव से जुड़े सभी विवादों को देखा-परखा। पहली बार देश में किसी राष्ट्रपति को कोर्ट में गवाह के तौर पर पेश होना पड़ा। गिरि भारत के चौथे राष्ट्रपति थे। वे चाहते तो अपने किसी प्रतिनिधि को कोर्ट भेज सकते थे, लेकिन उन्होंने कहा कि वे खुद कोर्ट में पेश होंगे। उनके लिए कोर्ट में बैठने के लिए विशेष कुर्सी का प्रबंध किया गया। जहां उनसे जिरह हुई।
क्या थे आरोप
- गिरी के चुनाव में संसद भवन के सेंट्रल हाल में सांसदों को पैंफ्लेट बांटे गए थे। इनमें गिरि को अंतरआत्मा की आवाज पर वोट देने का आग्रह किया गया था।
- प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार रेड्डी के खिलाफ अपशब्दों का प्रयोग था।
- श्रीमति गांधी और उनके मंत्रियों ने सांसदों और विधायकों पर दबाव डाला कि वे गिरि को वोट दे (सांसद और विधायक ही राष्ट्रपति चुनाव में वोट देते हैं।)
- पैम्फलेट किसने छापे यह उनपर नहीं लिखा था, लेकिन ओल्ड कांग्रेस के दिग्गजों ने दावा किया कि यह सबको मालूम है।
- इसमें ओल्ड कांग्रेस के लोगों को स्वार्थी बताया गया था। रेड्डी भी ओल्ड कांग्रेस में थे (नई कांग्रेस तब इंदिरा गांधी ने बनाई थी और कांग्रेस के सभी बुजुर्ग नेताओं ने उनसे अलग ओल्ड कांग्रेस बना ली थी)
- ओल्ड कांग्रेस के नेताओं को 1967 के चुनावों में कांग्रेस की करारी हार का जिम्मेदार ठहराया गया था।
क्या हुआ कोर्ट की सुनवाई में
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सर्वमित्र सीकरी, जेएम शैलेट, सीए वैद्यलिंगम, वशिष्ठ भार्गव तथा जीएम मित्तर की बेंच ने सुनवाई की। एक साल तक मामला चला। अंत में 14 सितंबर 1970 को गिरि के पक्ष में फैसला हुआ।
क्यों हुआ यह नाटक
- 3 मई 1969 को तत्कालीन राष्ट्रपति डा. ज़ाकिर हुसैन का इंतकाल हो गया था। उपराष्ट्रपति वीवी गिरि को कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाया गया।
- कांग्रेस के कुछ दिग्गज कामराज, अतुल्य घोष, एसके पाटील आदि नीलम संजीवा रेड्डी को राष्ट्रपति बनाना चाहते थे।
- इंदिरा गांधी ने रेड्डी के नामांकन पत्र पर प्रस्तावक के रूप में दस्तखत किए थे।
- बाद में उन्होंने अपना विचार बदल दिया।
- इंदिरा गांधी गिरि को राष्ट्रपति बनाना चाहती थीं...महज इसलिए कि तब तक उपराष्ट्रपति को राष्ट्रपति पद पर पदोन्नत करने की परंपरा थी।
- गिरि ने कार्यवाहक राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दिया, उनकी जगह सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एम हिदायतुल्लाह कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाए गए।
- इंदिरा गांधी ने सभी कांग्रेसजनों को अंतरआत्मा की आवाज पर (यानी गिरि को) वोट देने की अपील की।
- चुनाव में वीवी गिरि जीत गए
नतीजा
- इससे इंदिरा गांधी मजबूत हुई
- ओल्ड कांग्रेस अलग हुई
- इसी ओल्ड कांग्रेस के मोरारजी देसाई जेपी आंदोलन के बाद प्रधानमंत्री बने, संजीवा रेड्डी को राष्ट्रपति बनाया गया....
- भाजपा ने ओल्ड कांग्रेस का हाथ थाम सत्ता संभाली फिर बाहर भी हुई
- बाद में फिर इंदिरा गांधी मजबूत हुई
- अब जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस है वह असल में इंदिरा कांग्रेस ही है (यही केंद्र की यूपीए सरकार का प्रमुख घटक है)
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