क्या केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार कांग्रेस पार्टी से दूरी बना रहे हैं? पवार के एक करीबी नेता का कहना है
कि 2014 के लोकसभा चुनाव में और उसके बाद महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में नए
राजनीतिक समीकरण देखने को मिल सकते हैं। शरद पवार ने इस दिशा में काम शुरू
कर दिया है। पवार की इस राजनीति का संकेत देने वाली कई बातें हुई हैं।
सबसे अहम यह है कि उनके करीबी नेता और हाल में सांसद बने डीपी त्रिपाठी ने
खुलासा किया है कि 2004 में शरद पवार ने मंत्री बनने से इनकार कर दिया था।
उन्हें सोनिया गांधी के विदेशी मूल से इतनी परेशानी थी कि अगर सोनिया
प्रधानमंत्री बनतीं तो पवार मंत्री नहीं बनते। पवार की ओर से इसका खंडन
नहीं हुआ है। जबकि तथ्य यह है कि सोनिया गांधी के नेतृत्व में यूपीए की
सरकार बनाने के लिए राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को समर्थन पत्र भेजने
वालों में पवार के भी दस्तखत थे। जब सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री बनने से
इनकार कर दिया तो वामपंथी नेताओं के साथ जो प्रतिनिधिमंडल सोनिया को मनाने
10, जनपथ गया उसमें पवार भी थे। पवार के साथ गए एक नेता का कहना था कि
सोनिया को मनाने में पवार सबसे ज्यादा मुखर थे। फिर सवाल है कि इस समय इस
चर्चा का क्या मतलब है? कांग्रेस से दूरी दिखाने का यह अकेला मामला नहीं
है। शरद पवार ने राष्ट्रपति चुनाव में यूपीए को समर्थन दिया, लेकिन प्रणब
मुखर्जी के नामांकन में वे मौजूद नहीं थे। उनकी जगह डीपी त्रिपाठी नामांकन
में गए। इसी तरह पवार की पार्टी की सांसद और केंद्रीय मंत्री अगाथा संगमा
अपने पिता पीए संगमा के प्रचार में घूम रही हैं और चेतावनी देने के बावजूद
पार्टी ने उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं की है। तभी यह माना जा रहा है कि संगमा
की उम्मीदवारी को भी पवार का समर्थन है। महाराष्ट्र की राजनीति में पवार
के भतीजे अजित पवार ने कांग्रेस से एलायंस खत्म करने वाले कई काम किए हैं।
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