भारतीय जनता पार्टी के साथ एक लंबा अरसा बिताने के बाद उसकी प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देने की घोषणा कर चुके कर्नाटक में भाजपा के मजबूत नेता बीएस येदियुरप्पा आज पार्टी से अपने लंबे जुड़ाव को याद करके भावुक हो गये। हालांकि उन्होंने भाजपा नेताओं पर अपने खिलाफ ‘षड्यंत्र’ रचने को लेकर आज भी निशाना साधा। आंखों में आ रहे आंसुओं को रोकने की कोशिश करते हुए उन्होंने कहा ‘‘पार्टी ने मुझे सब कुछ दिया और मैंने भी पार्टी के लिए अपना सर्वस्व कुर्बान कर दिया।’’ येदियुरप्पा ने कहा कि वह अपने (भाजपा के) ही लोगों के कारण पार्टी छोड़ रहे हैं। वे नहीं चाहते कि मैं पार्टी में बना रहूं, इसीलिए मैं पार्टी की प्राथमिक सदस्यता और विधायक पद से भी इस्तीफा दे रहा हूं।
समझा जाता है कि आज दोपहर वह अपना इस्तीफा विधानसभा अध्यक्ष केजी बोपैया को सौंप देंगे। येदियुरप्पा पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से अपना इस्तीफा भी फैक्स से भेजेंगे। येदियुरप्पा ने कहा कि भाजपा में कुछ लोग नहीं चाहते थे कि मैं मुख्यमंत्री बनूं। वे मुझे किनारे लगाना चाहते थे। मैं पिछले एक साल से काफी धैर्य के साथ इसकी अनदेखी कर रहा था। उन्होंने कहा ‘‘मैं काफी दुख के साथ पार्टी छोड़ रहा हूं।’’ किसी भी व्यक्ति का नाम लिये बगैर उन्होंने कहा कि राज्य के कुछ नेताओं ने ‘‘मेरी पीठ में छूरा भोंका है।’’
येदियुरप्पा ने कहा कि पिछले साल पार्टी ‘हाई कमान’ के निर्देश पर उन्होंने पार्टी के ‘अनुशासित सिपाही’ की तरह मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने कहा, ‘‘उन्होंने मेरी अच्छाई को मेरी कमजोरी समझ लिया।’’ उन्होंने बताया कि नौ दिसंबर को हावेरी में एक सार्वजनिक जनसभा में वे औपचारिक रूप से कर्नाटक जनता पक्ष में शामिल होंगे। येदियुरप्पा ने जगदीश शेट्टार सरकार में शामिल अपने समर्थक विधायकों और मंत्रियों से अपील की है कि वे इस्तीफा नहीं दें ताकि सरकार अपना कार्यकाल पूरा कर सके। उन्होंने कहा कि वह सरकार को अस्थिर नहीं करना चाहते। उन्होंने कहा, ‘‘मैंने उनसे कुछ समय के लिए इस्तीफा नहीं देने के लिए कहा है।’’
येदियुरप्पा ने कहा कि उन्होंने किसी स्वार्थ के कारण भाजपा नहीं छोड़ी है। वह कर्नाटक को एक मॉडल और कल्याणकारी राज्य के तौर पर विकसित करना चाहते हैं। 70 वर्षीय लिंगायत नेता को कर्नाटक में भाजपा को सत्ता में लाने का श्रेय जाता है। यह भाजपा की दक्षिण में पहली सरकार थी। भाजपा शीर्ष नेतृत्व ने येदियुरप्पा को पार्टी से इस्तीफा देने से रोकने का प्रयास किया था लेकिन असफल रहे। फिर से मुख्यमंत्री पद दिए जाने और नहीं तो कम से कम उन्हें राज्य इकाई का पार्टी प्रमुख बनाये जाने की मांग को भाजपा द्वारा अस्वीकार किये जाने के बाद वह ज्यादा आक्रामक हो गये थे।
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