जयपुर, 14 फरवरी। शरद ऋतु की विदाई का संदेश यानी हमारा बसंत.. इसके साथ ही पेड़-पौधों और प्राणियों में नवजीवन का संचार होता है। प्रकृति नख से शिख तक सजी नजर आती है और तितलियां तथा भंवरे फूलों पर मंडराकर मस्ती का गुंजन गान करते दिखाई देते हैं। जंगलो में टेंसू के फूल खिलते है, आम में मंजर आते है.. महुए में फूल आते है। ये मौसम को मदमस्त बनाते है..
कुछ इसी तरह प्रेम इजहार का पर्व वेलेंटाइन डे भी मनाया जाता है। इस बार यह वेलेंटाइन और मदमस्त कर देने वाला मदनोत्सव का पर्व मिलाजुला 14 फरवरी यानी आज एकसाथ मनाए जा रहे है। जिस बसंत पंचमी को हम हजारों साल से मना रहे हैं और इसकी प्रक्रिया रति और कामदेव यानी क्यूपिड और वीनस के श्रृंगाररस से भरी है। वैलंटाइन कहे या बसंत पंचमी, इसके आगाज के साथ ही असल में प्रेमी-प्रेमिकाओं का पर्व होली आता है। होली का उत्सव इस मदनोत्सव का चरमबिन्दु है, जब रस के रसिया का एकाकार हो जाता है।
लेकिन, दोनो पर्वाे में अंतर फिर भी है। वेलेन्टाइन डे के विपरीत मदनोत्सव में विवाहेत्तर अथवा विवाहपूर्व संबंधों के लिए कोई स्थान नहीं है, बल्कि यह विशुद्घ रूप से दांपत्य संबंधों को मजबूत करने का पर्व होने के कारण नैतिक-सामाजिक दृष्टि से पूरी तरह स्वीकार्य है, जबकि वेलेन्टाइन डे ऐसी खामियों की वजह से भारतीय समाज में आज भी सर्व स्वीकार्य नहीं है।
नई उमंग..नई तरंग वेलेंटाइन संग आया बसंत |
लेकिन, दोनो पर्वाे में अंतर फिर भी है। वेलेन्टाइन डे के विपरीत मदनोत्सव में विवाहेत्तर अथवा विवाहपूर्व संबंधों के लिए कोई स्थान नहीं है, बल्कि यह विशुद्घ रूप से दांपत्य संबंधों को मजबूत करने का पर्व होने के कारण नैतिक-सामाजिक दृष्टि से पूरी तरह स्वीकार्य है, जबकि वेलेन्टाइन डे ऐसी खामियों की वजह से भारतीय समाज में आज भी सर्व स्वीकार्य नहीं है।
नई उमंग..नई तरंग वेलेंटाइन संग आया बसंत |
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