देश भर के प्रमुख महिला संगठनों ने महिलाओं के प्रति होने वाले यौन अपराधों पर यूपीए सरकार द्वारा लाए जा रहे अध्यादेश को ‘जनता के साथ धोखा’ करार दिया है.
महिला संगठनों ने राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी से गुजारिश की है कि इस अध्यादेश पर हस्ताक्षर ना करें.
महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली वृंदा ग्रोवर ने पीटीआई से कहा, “ये अध्यादेश जनता के भरोसे के साथ धोखा है. जिस तरह से सरकार हड़बड़ी में बिना किसी पारदर्शिता के साथ इस अध्यादेश को लेकर आई हैं उसे लेकर हम चिंतित हैं.”
कई संगठनों से जुडी महिला कार्यकर्ताओं ने कहा है कि जब संसद का सत्र कुछ हफ्ते बाद होने वाला है तो सरकार ने अध्यादेश क्यों जारी करने का फैसला किया.
"ये अध्यादेश जनता के भरोस के साथ धोखा है. जिस तरह से सरकार हड़बड़ी में बिना किसी पारदर्शिता के साथ इस अध्यादेश को लेकर आई हैं उसे लेकर हम चिंतित हैं."
वृंदा ग्रोवर
ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव विमेंस एसोसिएशन की कविता कृष्णन का कहना है, “इस अध्यादेश में जी एस वर्मा कमेटी के कई सुझावों को दरकिनर कर दिया गया है. सरकार ने इस अध्यादेश को जनता के साथ साझा नहीं किया है और ना ही इन बदलावों पर चर्चा या बहस हुई हैं.”
महिला संगठनों का मानना है कि सरकार को इस मामले में संपूर्ण सोच के साथ काम करना चाहिए था.
महिला संगठनों की आपत्ति है कि संघर्ष क्षेत्रों में महिलाओं पर होने वाली हिंसा जैसे मसलों को इस अध्यादेश में कोई जगह नहीं मिली है.
संगठनों ने कहा हैं, “शादी के तहत होने वाले बलात्कारों, समलैंगिकों के हितों को इस अध्यादेश में नकारा गया है. इतना ही नहीं जस्टिस वर्मा कमेटी की रिपोर्ट में मृत्यु दंड ना दिए जाने के सुझावों को भी सरकार ने नकार दिया है.”
महिला संगठन मांग कर रहे हैं कि सरकार को पीडित महिलाओं के पुनर्वास, निर्धारित समय में मामलों का निपटारा, आर्थिक रुप से कमज़ोर वर्गो को यौन अपराधों से कैसे बचाया जाया जैसे मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए.
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