एथलीट अरुणिमा कभी जिंदगी और मौत से जूझ रही थीं। अब एक पैर गंवाने के बाद भी वह दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर चढ़ाई करने जा रही हैं। एक अप्रैल को नेपाल से मिशन माउंट एवरेस्ट पर जाने से पहले अरुणिमा दिल्ली आ रही हैं।
एनबीटी से खास बात करते हुए अरुणिमा ने कहा जब वह एम्स ट्रॉमा सेंटर पर भर्ती थी तो लगता था कि जिंदगी खत्म हो गई है। एक दिन एक न्यूज पेपर में माउंट एवरेस्ट के बारे में पढ़ा। अचानक उनके अंदर इस चोटी पर चढ़ाई करने का मन करने लगा। लेकिन अपने पैर देख निराश हो गईं। जब आर्टिफिशियल पैर लगाया गया और इसके बल पर वह अपना हर काम करने लगी तो फिर माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने का सपना जुनून बन गया। परिवार वालों ने भी हौसला बढ़ाया। माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करने वाली देश की पहली महिला बिछेंद्री पाल से मिली तो फिर क्या था, उनके सपनों में पंख लगने लगा। वह दिन दूर नहीं जब माउंट एवरेस्ट पर कदम रखने वाली वह डिसएबल महिला बन जाएंगी।
वह कहती हैं कि जिंदगी जीने का नाम है। अगर जीने की ललक हो तो इंसान अपनी हर इच्छा का पूरा कर सकता है। वह वॉलीबॉल प्लेयर नहीं बन पाईं लेकिन आज जो वह कर रही हैं उसमें पहले से ज्यादा खुश हैंमाउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई से पहले अरूणिमा ने इसकी बेसिक ट्रेनिंग उत्तरकाशी नेहरू इंस्टिट्यूट ऑफ माउंटीनेरिंग से लिया है। टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन की चीफ प्रमुख बिछेंद्री पाल की अगुवाई में सितंबर 2012 को उन्होंने पहली बार चढ़ाई शुरू की और 21,110 फीट लद्दाख की चांगसर कांगड़ी की चोटी पर फतह हासिल की। इस फतह ने अरुणिमा के सपने में जोश भर दिया। अरुणिमा ने माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने से पहले प्रधानमंत्री से मिलना चाहती हैं। इसलिए वह 25 मार्च को दिल्ली आ रही हैं।
एथलीट अरुणिमा अप्रैल 2011 में पद्मावती एक्सप्रेस ट्रेन से लखनऊ से दिल्ली आ रही थीं। बरेली से 15 किलोमीटर पहले चलती ट्रेन में उन्हें किसी ने नीचे धकेल दिया। वह बुरी तरह जख्मी हो गईं। एम्स ट्रॉमा सेंटर में इलाज के दौरान उनका बायां पैर काटना पड़ा था।।
एनबीटी से खास बात करते हुए अरुणिमा ने कहा जब वह एम्स ट्रॉमा सेंटर पर भर्ती थी तो लगता था कि जिंदगी खत्म हो गई है। एक दिन एक न्यूज पेपर में माउंट एवरेस्ट के बारे में पढ़ा। अचानक उनके अंदर इस चोटी पर चढ़ाई करने का मन करने लगा। लेकिन अपने पैर देख निराश हो गईं। जब आर्टिफिशियल पैर लगाया गया और इसके बल पर वह अपना हर काम करने लगी तो फिर माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने का सपना जुनून बन गया। परिवार वालों ने भी हौसला बढ़ाया। माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करने वाली देश की पहली महिला बिछेंद्री पाल से मिली तो फिर क्या था, उनके सपनों में पंख लगने लगा। वह दिन दूर नहीं जब माउंट एवरेस्ट पर कदम रखने वाली वह डिसएबल महिला बन जाएंगी।
वह कहती हैं कि जिंदगी जीने का नाम है। अगर जीने की ललक हो तो इंसान अपनी हर इच्छा का पूरा कर सकता है। वह वॉलीबॉल प्लेयर नहीं बन पाईं लेकिन आज जो वह कर रही हैं उसमें पहले से ज्यादा खुश हैंमाउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई से पहले अरूणिमा ने इसकी बेसिक ट्रेनिंग उत्तरकाशी नेहरू इंस्टिट्यूट ऑफ माउंटीनेरिंग से लिया है। टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन की चीफ प्रमुख बिछेंद्री पाल की अगुवाई में सितंबर 2012 को उन्होंने पहली बार चढ़ाई शुरू की और 21,110 फीट लद्दाख की चांगसर कांगड़ी की चोटी पर फतह हासिल की। इस फतह ने अरुणिमा के सपने में जोश भर दिया। अरुणिमा ने माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने से पहले प्रधानमंत्री से मिलना चाहती हैं। इसलिए वह 25 मार्च को दिल्ली आ रही हैं।
एथलीट अरुणिमा अप्रैल 2011 में पद्मावती एक्सप्रेस ट्रेन से लखनऊ से दिल्ली आ रही थीं। बरेली से 15 किलोमीटर पहले चलती ट्रेन में उन्हें किसी ने नीचे धकेल दिया। वह बुरी तरह जख्मी हो गईं। एम्स ट्रॉमा सेंटर में इलाज के दौरान उनका बायां पैर काटना पड़ा था।।
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