- सीधे जनरल वीके सिंह को रिपोर्ट करती थी यह डिविजन
- जांच के आदेश
सेनापति जनरल वीके सिंह अब रिटायर होकर अन्ना हजारे और बाबा रामदेव की भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम से जुड़ गए हैं। वे वर्तमान केंद्र सरकार को भ्रष्ट बता रहे हैं। अन्ना हजारे के मंच पर नए राजनीतिक विकल्प की बात करते हैं। यह साबित करने के लिए काफी है कि हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था बनाने वालों ने सेना को इस तरह ढाला है कि वह चाहकर भी देश की सत्ता पर सीधे कब्जा न कर सके।
मुझे याद है जब केंद्र में सरकारें टिक नहीं पा रही थीं, चौधरी चरण सिहं संसद का सामना किए बिना इस्तीफा दे आए थे और कार्यवाहक प्रधानमंत्री थे तब के सेनापति जनरल ओपी मल्होत्रा ने कहा था कि सेना सत्ता संभालने को तैयार है, लेकिन अभी ऐसा मौका नहीं आया है। पाकिस्तान होता तो सेना ने शायद सत्ता पर कब्जा कर लिया होता।
अब नए सेना अध्यक्ष ने पता लगा लिया है कि जनरल वीके सिंह शायद सत्ता में आने का रास्ता सेना के माध्यम से खोज रहे थे। राजनेताओं को भ्रष्ट बताने वाले जनरल सिंह ने केंद्रीय मंत्रियों व अन्य राजनेताओं के फोन टैप करने के लिए सेना में एक नई शाखा बनाई थी। इसके लिए बाकायदा 1-2 नहीं 18 करोड़ रुपए के बजट का इंतजाम किया था। कहां से और कैसे इसका खुलासा करने के लिए जांच शुरू हो गई है।
नेताओं की जासूसी करने वाला सेना का यह विभाग सीधे सेनाध्यक्ष यानी जनरल वीके सिंह को रिपोर्ट करता था। जनरल सिंह सरकार से अपना कार्यकाल एक साल बढ़वाने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक चले गए थे। शायद जासूसी इसलिए भी करवा रहे होंगे कि नेताओं को ब्लैकमेल करवा सकें। यह कह सकें कि फलां का फोन आया था आपने इतने पैसे या फायदा मांग कर फलां को यह लाभ पहुंचाया था। लेकिन शायद एके एंटनी और प्रणब मुखर्जी उनके पल्ले पड़े। ये सख्तजान लोग बाकी कांग्रेसियों से अलग निकले।
जनरल सिंह का दांव खाली गया तो जनरल तेजिंदर सिहं पर 14 करोड़ रुपए की रिश्वत की पेशकश का इल्जाम लगा दिया। रिटायर हो चुके ले. जनरल तेजिंदर ने जनरल सिंह पर मानहानि का मुकदमा ठोक दिया। यह अभी कोर्ट में चल रहा है। ले. जनरल तेजिंदर सिंह डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी के प्रमुख थे। आखिर उनसे जनरल सिंह की क्या दुश्मनी थी। सेना ने बाकायदा प्रेस विज्ञप्ति जारी कर उन पर आरोप क्यों लगाए। जबकि उसकी कोई जरूरत नहीं थी। शायद अब खुलासा हो जाए। कहा गया था कि तेजिंदर मीडिया को सेना की गोपनीय बातें लीक कर रहे हैं। हकीकत क्या थी। कहीं ऐसा तो नहीं था कि जनरल सिंह ने उन्हें नेताओं की जासूसी करने को कहा हो और इनकार करने पर उन्हें फंसा दिया गया हो। कुछ भी हो सकता है।
जनरल सिंह ने नेताओं की जासूसी के लिए नया तरीका निकाला था। सेना की नई शाखा बनाई थी। नाम रखा था टैक्नीकल सपोर्ट डिविज़न। मालूम था कि मंत्रियों का काम बहुत गोपनीय होता है। हर कोई उनके दफ्तर में घुस नहीं सकता। सेना के नाम पर उन्हें कोई रोक नहीं सकता। सो टैक्नीकल सपोर्ट के नाम पर वे हर उस मंत्री के दफ्तर में घुसे जिससे उन्हें लाभ हो सकता था। यह डिविज़न उन्होंने खुद बनाई। अपने ही व्यक्तिगत नियंत्रण में रखी। 18 करोड़ रुपए इसके खर्च के लिए सेना के बजट से निकाले। अब इस डिविज़न को भंग करने का फैसला लिया गया है।
नए सेनापति जनरल विक्रम सिंह ने इसे भंग करने से पहले यह पता लगाने के आदेश दिए हैं कि आखिर इसने किया क्या क्या। किस किस मंत्री को फंसाने की साजिश थी। इतना बजट कहां से आया। इससे जनरल सिंह ने क्या क्या लाभ उठाया। कौन कौन से अतिसंवेदनशील मुद्दों की जानकारी चोरी छिपे जनरल सिंह अपने साथ ले गए। देश के लिए वह कितना बड़ा खतरा हैं या उनसे कोई खतरा नहीं है।
यह पता लग गया है कि इस डिविज़न का कोई सामरिक महत्व नहीं था। फिर यह सीधे सेनाध्यक्ष को क्यों रिपोर्ट करती थी। इसकी जांच हो रही है। आरोप यह भी है कि इस डिविजन को मोबाइल फोन टैप करने के दो अत्याधुनिक उपकरण दिए गए थे। कौन जिम्मेदार था। उसे क्या क्या जिम्मेदारी सौंपी गई थी। असल मकसद क्या था। किस का क्या फायदा हुआ। उस पर खर्च होने वाले 18 करोड़ रुपए कहां से कैसे किस मद में निकाले गए। उसके उपयोग की इजाजत किसने दी। ये वे कुछ सवाल हैं जिनके जवाब जांच में सामने आएंगे। यह सब पता लगाने के लिए तीन सितारा लेफ्टिनेंट जनरल स्तर के अधिकारी की अध्यक्षता में जांच समिति बनाई गई है। रिपोर्ट कब तक आएगी अभी यह तय नहीं है।